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________________ में प्रीत पुद्गलथी करी, तेथी भम्यो संसारमां, जो प्रीत तुज संगे करूं, तो मुक्ति पण पलवारमां तारो अचित्यप्रभाव जाणी प्रीत करतो हुं तने, जो कर्मवश भूलुं तने, तो पण समरजे तुं मने. (१९) प्रियतम तमे मारा प्रभु निशदिन तमोने झंखतो, तारा विरहनी वेदनामां रात - दिन हुं झुरतो, तारा मिलननी प्यासमां निजदेहने पण भूलतो, छे आशा के मळशो तमे, तेथी तने नित समरतो. (२०) प्रियतम स्वीकार्या में तने, प्रीति अनादिकाळनी, तरछोडी किम चाल्या तमे, निष्ठुर ने निर्दय बनी, भमता अनादिकाळमां शोध्यो तने आ भववने, थाक्यो हवे बोलावजे, जल्दी मने तारी कने. (२१) तारुं स्मरण, तारुं रटण, तारा सुपन जोया करूं, तारुं श्रवण, तारुं मनन, तारु ज ध्यान कर्याकरूं, क्यारे तरीश आ भवथकी, चिंता नथी मुजने जरा, सुक्या बधा भवसागरो, तारा प्रभावे माहरा (२२) शरणुं हुं वरूं, अरिहंत - सिद्ध – सुसाधु ने, भवोभवतणा सवि पापनुं मिच्छामि दुक्कडम् हुं करूं, सवि जीवकृत सत्कृत्यनी करूं शुभ मने अनुमोदना, "सवि जीव करूं शासनरसी" नी, भावुं नित शुभ भावना. (२३) ७४
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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