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________________ धर्म पुण्यनी लक्ष्मीनी गांठे... सत्कर्मोनो सथवारो, भवसागर तरवाने माटे... अन्य नथी कोई आरो, जतां जतां पंखी जीवननो... साचो मर्म समजावी गयुं ...अक | तारी जो हांक सुणी कोई ना आवे तारो जो हांक सुणी कोई ना आवे, तो एकलो जाने रे, ___अकलो जाने, ओकलो जाने, ओकलो जाने रे... जो सौनां मों सिवाय, ओरे ओरे ओ अभागी ! सौनां मों सिवाय, ज्यारे सौओ बेसे मों फेरवी, सौओ फरी जाय, त्यारे हैयुं खोली, अरे तुं मों मूकी, तारा मननुं गाणुं ओकलो गाने रे... (१) । जो सौओ पाछा जाय, ओरे ओरे ओ अभागी ! सौओ पाछा जाय. ज्यारे रणवगडे नीसरवा टाणे सौ खूणे संताय, त्यारे कांटाराने तारे लोही नीगळते चरणे भाई ! ओकलो धाने रे... (२) ज्यारे दीवा ना धरे कोई ओरे ओरे ओ अभागी ! दीवो ना धरे कोई. ज्यारे घनघोर तूफानीरात, बार वासे तने जोई, त्यारे आभनी वीजे सळगी जई सौनो दीवो थाने रे ओकलो जाने रे... (३) - पंखीडाने आ पिंजरं पंखीडाने आ पिंजरे, जूनुं जूनुं लागे, बहुओ समजाव्युं तोये पंखी नवं पिंजरुं मांगे.. ऊमट्यो अजंपो अने पंडना रे प्राणनो, अणधार्यो कर्यो मनोरथ दूरना प्रयाणनो, अणदीठे देश जावा लगन अने लागी... पंखीडाने० ૨૪૦
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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