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________________ मधुरां मीठां ने मनगमतां, पण बंधन अंते बंधन छे, लई जाय जनमना चकरावे, अवुं दुःखदायी आलंबन छे, हुं लाख मनावुं मनडाने, पण ओक ज अनो 'उहकारो' ....बंधन बंधन. अकळायेलो आतम के' छे, मने मुक्त भूमिमां भमवा दो, ना राग रहे, ना द्वेष रहे, अवी कक्षामां मने रमवा दो, मित्राचारी आ तनडानी, बे चार घडीनो चमकारो, ... बंधन बंधन. वरसो वीत्यां, वीते दिवसो, आ बे शक्तिना घर्षणमां, शुं मळ, विष के अमृत, आ भवसागरना मंथनमां ? क्यारे पंखी आ पिंजरानुं, करशे मुक्तिनो टहुकारो ? ...बंधन बंधन. मुक्ति मळे के ना मळे... मुक्ति मळे के ना मळे... मारे भक्ति तमारी करवी छे; मेवा मळे के ना मळे... मारे सेवा तमारी करवी छे. मुक्ति मळे के... मारो कंठ मधुरो ना होय भले, मारो सूर बेसूरो होय भले; शब्दो मळे के ना मळे, मारे स्तवना तमारी करवी छे. मुक्ति मळे के... आवे जीवनमां तडका ने छाया, सुख दुःखना पडे त्यां पडछाया; काया रहे के ना रहे, मारे माया तमारी करवी छे मुक्ति मळे के... हुं पंथ तमारो छोडुं नहि, ने दूर दूर क्यांये दोडुं नहि; पुण्य मळे के ना मळे, मारे पूजा तमारी करवी छे. मुक्ति मळे के... ૨૧૧
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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