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________________ अपने साथ नहीं ले गए। साधना का मार्ग तो वे जगत को देकर गए। उन्होंने यह बात स्पष्ट कर दी कि जगत में कोई भी साधक यह साधना करेगा, वह साध्य की प्राप्ति कर सकेगा । नवकार एक साधना है। भूत- वर्तमान और भविष्य तीनों ही काल की दृष्टि से यह साधना भी शाश्वत अजर-अमर है। अतः नवकार भी अजर-अमर है। अजरता और अमरता ही नवकार का शाश्वत स्वरुप है। अतः नवकार साधना के स्वरुप में अजर-अमर शाश्वत है । साधना क्या है ? साध्य प्राप्ति का मार्ग साधना है। साधक को साध्य के गन्तव्यस्थल पर पहुँचाने वाला यह मार्ग है। साधक और साध्य का मेल करवाने वाला माध्यम साधना है। ऐसी साधना तो सदाकाल रहेगी, परन्तु साधना करने वाला साधक बन जाएगा। अतः साधक को सोचना यह है कि मुझे साधना करनी है, या नहीं । यदि वह साध्य को प्राप्त करने का इच्छुक हैं, तब तो उसके लिये साधना करना, अपेक्षित है, अन्यथा जैसी इच्छा। साध्य के निर्णय बिना साधना संभव नहीं हैं । इसी प्रकार साधना के बिना साधक भी बनना अशक्य है । नवकार महामंत्र में प्रयुक्त " लोए” और “ सव्व” शब्द नवकार की व्यापकता के सूचक हैं। 'लो' शब्द भौगोलिक स्थिति का निर्देश करता है जब कि 'सव्व' शब्द सर्व व्यापकता का निर्देश करता है। चौदह राजलोक में सर्वत्र व्याप्त नवकार वास्तव में सर्वव्यापक है। नवकार का साम्राज्य चौदह राजलोक के तीनों ही लोकों में व्याप्त है । नवकार का अस्तित्व त्रिलोक में है। इसका रटन - स्मरण सदैव एवं सर्वत्र होता रहा है - हो रहा है। ऐसा कौन सा स्थल है, जहाँ नवकार का रटनस्मरण न चलता हो ? नरक में नवकार गिना जा रहा है, तिर्च्छा लोक में मनुष्य और तिर्यंच इसे गिन रहे हैं, और ऊर्ध्व लोक के स्वर्ग में इसकी गणना प्रचलित है । नरक के असंख्य नारकीय जीवों में से विशेष संख्या में तो नवकार गिनते ही होंगे - इसी प्रकार स्वर्ग - देवलोक के भी असंख्य देवताओं में से संख्यात सम्यक्त्वधारी जीव तो नवकार गिनते ही होंगे और इसी प्रकार तिर्च्छा लोक के व्यापक क्षेत्र में तिर्यंच पन्वेंन्द्रिय जीव भी अल्प संख्या में नवकार की साधना करते होंगे, और इसी प्रकार संख्यात संख्यावाले मनुष्यों की संख्या में से भी अल्पसंख्या में मनुष्य भी नवकार गिनते होंगे। इस प्रकार तीनों ही लोक में नवकार की साधना, अविरत-निरंतर चलती है । भूतकाल के अनंत वर्षो में नवकार की साधना होती थी । आज भी हो रही है और भविष्य में भी अनंत वर्षों तक नवकार की साधना होती 40
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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