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________________ अधिक लगती है कि केवली महात्मा को केवलज्ञान हो जाता है, परन्तु उन्हें भी प्ररुपणा तो श्रुतज्ञान के रुप में ही करनी पड़ती है । केवली के लिये उनका ज्ञान केवलज्ञान कहलाएगा, परन्तु हमारे जैसे श्रोताओं के लिये तो वह श्रुतज्ञान के स्वरुप में ही कहलाएगा, यद्यपि सर्व अपेक्षा से भी विचार करें तो केवलज्ञान की सर्वश्रेष्ठता, सर्वोत्कृष्टता सर्वोच्चता किसी भी प्रकार से तनिक भी न्यून होने वाली नहीं हैं । वैसे तो केवलज्ञान ही उच्च है । श्रुतज्ञान का मूल उत्पत्तिस्थान तो अन्ततः केवलज्ञान ही है परन्तु श्रुतज्ञान ही दीर्घजीवी-दीर्घकालिक होने से अधिक उपयोगिताकारक लगता हैं । मात्र ज्ञान नहीं, परन्तु विज्ञान ___ महामंत्र नवकार को भी श्रुतज्ञानात्मक कहा है । अतः नवकार महामंत्र की ज्ञानात्मक सिद्धि बहुत बड़ी सिद्धि है । ज्ञानात्मकता के आधार पर नवकार महामंत्र में एक नहीं बल्कि अनेक पदार्थों का ज्ञान होगा, विशिष्ट तत्त्वों का ज्ञान होगा अतः नवकार महामंत्र मात्र ज्ञानात्मक ही नहीं परन्तु तत्त्वज्ञान स्वरुप है । आत्मा - परमात्मा मोक्षादि अनेक तत्त्वों का ज्ञान इस नवकार महामंत्र से होता है। आगे बढ़े तो एक बात और अधिक समझ में आएगी कि - इस जगत में, अनेक दर्शनों में अन्यत्र तत्त्वज्ञान के क्षेत्र में और अन्य धर्मों में भी आत्मादि तत्त्वों के विषय में जो ज्ञान मिलेगा, उसकी अपेक्षा अनंत गुना विशिष्ट कक्षा का ज्ञान इस महामंत्र में मिलेगा । अतः नवकार मात्र सामान्य ज्ञानात्मक ही नहीं, परन्तु विशिष्ट ज्ञानात्मक विज्ञान है - विज्ञान के स्वरुप में हैं । ज्ञान और विज्ञान में इतना अंतर है कि ज्ञान सामान्य होता है, जबकि विज्ञान विशिष्ट ज्ञानात्मक होता है । व्याख्या भी इस प्रकार कहती है कि “विशिष्टं यद् ज्ञानं तद् विज्ञानं” विशिष्ट ज्ञान को विज्ञान कहते हैं । आजकल विज्ञान मात्र यंत्रज्ञान के अर्थ में अधिक रुढ बनता जा रहा हैं , और यंत्रज्ञान के सिवाय जो सामान्य ज्ञान अथवा तत्त्वज्ञानादि ज्ञानक्षेत्र है, उस अर्थ में ज्ञान शब्द प्रचलित हुआ है, परन्तु विज्ञान सर्वक्षेत्र में प्रयुक्त हो सकता हैं, मात्र यंत्रज्ञान क्षेत्र में ही नहीं । विज्ञान प्रयोगों पर अधिक आधारित हैं, जब कि ज्ञान चिंतनात्मक है - शास्त्रीय है, सैद्धान्तिक है, और आध्यात्मिक भी है, परन्तु जिस जिस विषय का सामान्य ज्ञान विशेष स्वरुप धारण करता हैं, तब यह
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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