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________________ 1 है। नवकार का अर्थगांभीर्य बड़ा ही आश्चर्यकारी है, इसका अर्थ महान् हैं । इसके अर्थ की महानता और विशालता के आधार पर भी नवकार महामंत्र की महानता सिद्ध होती है । यह द्दष्टिकोण भी बड़ा ही उपयोगी हैं । यदि नवकार के अर्थादि की विचारणा की जाए, तो यह अगाध हैं, गहन है । महासागर की गहराई की थाह ली जा सकती हैं, परन्तु नवकार की गहनता का अनुमान अशक्य प्रायः हैं • इस भाव को कल्पसूत्रकार कल्पमाहात्म्य का वर्णन करते हुए निम्न शब्द प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि - - सव्वनईणं जा हुज्ज, बालुआ सव्वोदहीणं जं उदयं । तत्तो अनंतगुणीओ, अत्थो इक्कस्स सुत्तस्स ॥ सभी नदीओं की रेत इकट्ठी करें तथा सभी समुद्रों का पानी एकत्रित करके उससे लिखा जाए और जितना विस्तार हो उसकी अपेक्षा से भी एक सूत्र का अर्थ अनंतगुना अधिक हैं । अर्थ की इतनी अधिक गंभीरता और विशालता देखकर आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह सकते । नवकार की महत्ता उसके अर्थों पर है। अर्थ के आधार पर नवकार ज्ञानस्वरूपात्मक है । मात्र अन्य मंत्रो की भाँति यह मंत्रात्मक ही नहीं है, परन्तु ज्ञानात्मक भी है । अपेक्षा से श्रुतज्ञान की महत्ता : पाँचो ही प्रकार के ज्ञानों में केवलज्ञान निश्चित् रुप से सर्वोत्कृष्ट है, सर्वोच्च है - इसमें दो मत नहीं हैं, परन्तु उपयोगिता, उपकारिता तथा दीर्घकालिकता आदि की अपेक्षा से विचार करें तो श्रुतज्ञान की महत्ता भी कम नहीं आंकी जा सकती, क्यों कि केवलज्ञान का काल सीमित होता है, जब कि श्रुतज्ञान का काल उसकी अपेक्षा दीर्घ होता है । भरतक्षेत्र में केवलज्ञान के द्वार बंद हो जाने के बाद किसी को भी केवलज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई, परन्तु श्रुतज्ञान तो २१ हजार वर्ष के पँचम आरे के अंत तक चलने वाला है । इस प्रकार काल की दृष्टि से श्रुतज्ञान की दीर्घकालिकता ( इस अपेक्षा से ) सिद्ध होती है । दूसरे प्रकार से केवलज्ञान जब सीमित काल में है तब उसकी उपयोगिता भी संबंधित काल तक ही मर्यादित रहने वाली हैं, जबकि श्रुतज्ञान २१ हजार वर्ष तक रहनेवाला हैं । अतः उसकी उपयोगिता अधिक काल तक बनी रहने वाली है । इस दृष्टि से भी श्रुतज्ञान की महत्ता अपेक्षा भेद से अवश्य लगती हैं । दूसरी ओर से विचार करें तो एक बात 6
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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