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________________ भवों की संख्या के बारे में प्रश्न पूछा । हे प्रभु ! निगोद से निकलकर आज दिन तक इस भव तक मैने कितने भव किये होंगे ? कितना काल बीता होगा ? कैसे कैसे भव किये हैं ? इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए केवलज्ञानी सर्वज्ञ प्रभु ने फरमाया किहे जीव ! तने इतने अनन्त जन्म धारण किये हैं कि उन सबको कहने जितना तो मेरा आयुष्य काल भी नहीं है। कैसे कहुँ ? बात भी सही है। अनन्त ज्ञानी सर्वज्ञ प्रभु त्रिकाल ज्ञानी है । यद्यपि अपने अनन्त ज्ञान से तीनों काल की बातें एक ही समय एक साथ जानते हैं, केवल दर्शन से एक साथ देखते भी हैं। परन्तु मुंह से कहना हो तो क्रमशः एक के बाद एक ही कह सकेंगे । एक साथ सब तो कहना संभव भी नहीं है। चूंकि शब्द तो एक के बाद एक ही निकलेंगे। इस तरह से एक-एक जन्म का सिर्फ नाम निर्देश भी करें तो भी वे सभी भव कह नहीं पाएंगे। क्योंकि आयुष्य काल सीमित है। अतः रूपक उपमा से कल्पना के बल पर समझिए कि केवलज्ञानी का एक हजार वर्ष का आयुष्य काल हो. जैसे रावण के दस मुंह की कल्पना की गई है उस तरह सर्वज्ञ के मानों एक हजार मुंह भी हों और प्रत्येक मुह से नाम निर्देश मात्र करते हुए १ मुंह से १ भव का उल्लेख मात्र ही करें और आगे कहते ही रहें तो १ सेकंड में कितने भव कहे ? १ सेकंड में १००० भव कहे। तो १ मिनिट में कितने ?-६०००० भत्र कहे । तो १ घंटे में कितने भव कहे ? .......... इस तरह १ दिन में कितने भव कहे ?..."-..."इस तरह एक महिने में कितने भत्र कहे ? १ वर्ष में किनने भव कहे ? उसी तरत १०० वर्ष में कितने भव कहे ? बिल्कुल रूके बिना धारा प्रवाहबद्ध अविरत कहते ही जाय तो १००० वर्ष में कितने भव कहें ? सुनने वाला थक जाता है और प्रभु से पुछता है-हे भगवान ! अब कितने कहे और कितने कहने और शेष हैं ? इसके उत्तर में केवलज्ञानी भगवान कहते हैं कि--मेरा तो आयुष्य समाप्त होने आया है । परंतु मैंने जहां तक तेरे भव कहे हैं उसके आगे कोई दूसरे केवलज्ञामी जो मेरे ही जैसे हजार मुंह और हजार वर्ष के आयुष्य वाले हो वे आगे तीव्र गति से कहते ही जाय और उनके आयुष्म की समाप्ति के बाद पुन: तीसरे, पुनः चौथे, पांचवें, पच्चीसवें, पचास, सो, पांच सौ, हजार, केवलज्ञानी बिना रूके क्रमशः नाम निर्देश मात्र करते हुए द्रुतगति से कहते ही जाय..."तो......"इस बीच सुनने वाले ने पूछा हे कृपानाथ ! अब आप यह तो बताइये कि कितने भव कहे और कितने कहने शेष रहे ? इस प्रश्न के उत्तर में अल्पज्ञ को सर्वज्ञ प्रभु क्या उत्तर दें ? कैसे समझाएं ? एक शब्द में कहें तो भी कैसे कहें ? अनन्त भव कहें और अनन्त भव अभी कहने शेष ३६ कर्म की गति न्यारी
SR No.002478
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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