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________________ एवं जन्म के बाद के जन्मान्तर का स्वरूप देखकर बताया कि इस संसार में मां मृत्य पा कर पत्नी बन सकती है और पत्नी मृत्यु पाकर मां बन सकती है। बाप मृत्यु पा कर बेटा बन सकता है और बेटा मृत्यु पा कर बाप बन सकता है। भाई मृत्यु पा कर शत्रु भी बन सकता है बेटी मृत्यु पा कर बहन भी बन सकती है। यह तो फिर भी ठीक है कि मृत्यु के बाद अगले जन्म में ऐसे सम्बन्ध बनते हैं, लेकिन जीवन में ऐसे सम्बन्ध आज भी संसार में हो रहे हैं जहां भाई-बहन की शादी हो जाती है। आए दिन अखबारों में पढ़ते हैं कि बापने अपनी बेटी पर बलात्कार किया। बेटे ने कुल्हाड़ी से मां और बाप दोनों को मार डाला। पति ने पत्नी को जिन्दी जला दी और पत्नी ने पति को चाय में जहर पिला दिया। कहीं भाई-भाई का गला घोटता है तो कहीं बाप बेटे को जान से मार डालता है। कहीं सासु बहु को जला देती है तो कहीं संसार से ऊब कर बह अपने आप जलकर मर जाती है। प्रेम के नाम पर भी मौत और मौत सामने दिखने पर भी प्रेम की चाहना । बड़ा ही विचित्र संसार का स्वरूप है। एक बहुमाली मंजिल से किसी कुंआरी कन्या ने जो माता बन चुकी थी, अपने नए जन्मे हुए शिशु को ऊपर से नीचे कुडे-कचरे में फेंक दिया । काश ! क्या माता के दिल में से संतान के प्रति प्रेम समाप्त होता जा रहा है? क्या दयालु माता निर्दय बनती जा रही है? परन्तु हां पत्नी बने पहले कुंआरी अवस्था में माता बनने के बाद क्या नतीजा आएगा? हाय, यही कलियुग की पहचान है कि पत्नी बनने के पहले मां बनना, और सन्तान के प्रति क्रूर बनकर फैंक देना । उस अपरिणित युवती ने ताजे जन्मे हुए शिशु को ऊपर से फेंक दिया । नीचे कागद का ढेर था उस पर बालक गिरा। सद्भाग्य वश बच गया। किसी सज्जन ने उठाकर अनाथाश्रम में दे दिया। पालन-पोषण हुआ। वह लड़की थी बड़ी हुई। अनाथाश्रमवासियों ने स्कूल में पढ़ाई और कालेज में भेजी। इधर माता-पिता ने जल्दी ही युवती की शादी कर दी। उसको एक लड़का हआ, लडके को स्कूल में भेजा... बड़ा होकर उसी कालेज में गया, वहां इसी लड़की से प्रेम हुआ जो अपनी ही बहन थी। चूंकि एक ही मां के दोनों संतान थे। शादी भी हो गई और संसार चलने लगा। ऐसी अनेक घटनाएं तो आज भी हो रही है। अमेरिका में जहाँ स्कूल-कालेज में छात्राएं पढ़ती हैं, वहां अपरिणित युवतियों में २०% से ३०% छात्राएं प्रति वर्ष माता बनती है। जिसमें १४ वर्ष से १८ वर्ष की आयु होती है और ५०% से ६०% जो माता नहीं बनती है व पहले से गर्भपात करा देती है। गर्भपात केन्द्रों पर स्कूल-कालेज की छात्राओं की कतारें लगती हो,यह कितनी शर्म की बात है। परन्तु वर्तमान युग के मानवी ने जहां अपने आप को बहुत ही ज्यादा बुद्धिशाली और सभ्य समझ लिया है वहां शर्म-धर्म कहां से रहे ? संसार का यह स्वरूप बड़ा ही डरावना है। हाँ, ऐसा तो चलता ही रहता है। कर्म की गति नयारी (४२)
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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