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________________ खम्भे ने पकड रखा होता और युवक चिल्लाता तो बात सही भी थी। लेकिन खुद ही चिल्ला रहा है। यह कैसी मूर्खता है? इसने खम्भे को पकड़ रखा है और खम्भा तो चिल्ला भी नहीं रहा है चूंकि जड़ है। चिन्तक था चिन्तन किया। यहां बल का काम नहीं था। कल (अक्कल) का काम है। उस सज्जन ने कस कर दो थप्पड़ उस युवक के मुंह पर जोर से मारी । चमत्कार ही समझ लो । युवक के हाथ छूट गए और सीधे गाल पर लग गए। युवक ने रोते हुए भारी स्वर में कहा मुझे मारा क्यों? क्या यह छूड़ाने का बचाने का तरीका है ? सज्जन ने कहा – माफ करना कभी ऐसा भी तरीका अजमाना पड़ता है। जबकि मेरे पहले दो सज्जनों ने हाथ खिंचकर काफी प्रयत्न किया पर नहीं छूड़ा सके अतः मैने बुद्धि पूर्वक एवं युक्ति पूर्वक यह तरीका अपनाया है। अतः माफ करना। परन्तु मैं यह पूछ रहा हुँ कि तुने खम्भे को पकड़ रखा था कि खम्भे ने तूझे पकड़ रखा था? यदि खम्भे में करंट होता तो कब का मर चुका होता । यह तो बताओ किसने किसको पकड़ रखा था। आश्चर्य है कि तुमने ही खम्भे को पकड़ रखा और तुम ही चिल्ला रहे थे तो क्या यह मूर्खता नहीं थी। वाह ! बहुत अच्छा प्रश्न था उस सज्जन का। इस रूपक को हम किसी संसारासक्त संसारी पर लें और देखें कि हमने संसार को पकड़ रखा है कि संसार ने हमको पकड़ रखा है? हम साधु-संतों के पास जाते हैं कहते हैं कि हे भगवन् ! मेरे ऊपर दया करो। इस संसार से बचाओ...छुडाओ ! साधु-संत सदा ही संसार छोड़ने का उपदेश देते हैं, लेकिन संसार ने यदि आपको पकड़ा हो तो तो आपको उसके पंजे से छुड़ा भी सकें। परन्तु संसार ने तो आपको पकड़ा नहीं है। आपने संसार को पकड़ कर रखा है। अतः साधु-सन्तों को चाहिए कि पहले दो सज्जनों की तरह प्रयत्न न करके तीसरे सज्जन के जैसा प्रयोग करे तो तो चमत्कार सम्भव है। चूंकि आपने आसक्ति से संसार को पकड़ रखा है। और फिर आप ही चिल्ला रहे हो अतः बड़ा मुश्किल है। सोते हुए को जगाना आसान है परन्तु जागते हुए को जगाना बहुत ही कठिन है । संसार हमको नहीं छोड़ेगा चूंकि उसने पकड़ भी नहीं रखा है। हमने ही आसक्ति से संसार को पकड़ रखा है अतः हमको ही छोड़ना पड़ेगा। तभी संसार छूटेगा। संसार का स्वरूप बड़ा ही विचित्र है। संसार में एक आता है दूसरा जाता है। एक जन्म लेता है तो दूसरा मरता है। बच्चा जन्म लेता है तो मां मरती है। कभी कभी दोनों ही मृत्यु की शरण में चले जाते हैं। किसी के घर महेफिल चल रही है तो किसी के घर...रूदन चल रहा है। कहीं हंसी-खुशियों का कोई पार नहीं है, तो कहीं रो रोकर आंखों से गंगा-जमुना बहा रहे हैं। कहीं सुख-मोज की लहरें चल रही है तो कहीं दुःख की थपेड़े खा रहे हैं । ज्ञानी भगवतों ने अपने ज्ञान योग से भावि का स्वरूप (४१) कर्म की गति नयारी
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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