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________________ सातवां अध्ययन : सत्य-संवर भी कह देना—'कितनी बड़ी जीवराशि मर गई; अजीवमिश्रिता है। मृत और जीवित दोनों के ढेर को देख कर अन्दा जिया एक साथ कह देना - इन जीवों के ढेर में इतने मरे हैं, इतने जिंदा हैं,यह जीवाजीवमिश्रिता भाषा है । हरे पत्ते या प्रत्येक वनस्पति के साथ अनन्तकाय का अधिक पिंड देख कर कहना-'सभी अनन्तकायिक हैं,यह अनन्तमिश्रिता भाषा है। तथा अनन्त काय के साथ प्रत्येक वनस्पतियों को अधिक मिश्रित देख कर कहना- ये सभी प्रत्येक वनस्पतिकायिक हैं, यह प्रत्येकमिश्रिता भाषा है । इसी प्रकार जहां कोई किसी को जल्दी-जल्दी काम करने के लिए प्रेरित करने हेतु दिन रहते-- सूर्य चमकते हुए भी कहता है-उठ जल्दी, रात हो गई है, अथवा रात रहते भी कहे,—उठ, सूरज निकल आया। यह अद्धामिश्रिता भाषा है। दिन का एक भाग अभी बीता नहीं है, फिर भी जल्दी मचाता है-'उठ, चल जल्दी, दोपहर हो गया है, यह अद्धाद्धामिश्रिता भाषा है। असत्यामृषा के बारह भेद - बारह प्रकार की भाषा ऐसी होती है, जो न तो सत्य कही जा सकती है, न असत्य ही। इसलिए उसे असत्यामृषा भाषा कहते हैं। उसके बारह भेद यों हैं—(१) आमंत्रणी-हे देवदत्त !' इस प्रकार सम्बोधित करके बुलाने वाली, (२) आज्ञापनिकी -- 'यह करो' इस प्रकार दूसरों को कार्य में प्रवृत्त करने के लिए आज्ञारूप भाषा, (३) याचनी-किसी वस्तु की याचनारूप भाषा जैसे—'दस रुपये दो।' (४) पृच्छनी-किसी विषय में पूछने के लिए प्रयुक्त की जाने वाली भाषा, जैसे—'राम कहां है ?' इस प्रकार पूछना, (५) प्रज्ञापनी—विनीत शिष्य को उपदेश देना । जैसे—'प्राणिवध से निवृत्त जीव आगामी भव में दीर्घायु होते हैं।' (६) प्रत्याख्यानी याचना करने वाले को इन्कार करने के रूप में या प्रत्याख्यान कराने के रूप में प्रयुक्त भाषा । जैसे—'तुम्हें हम नहीं देते ।' अथवा 'शराब पीने का त्याग करो' इस प्रकार की भाषा प्रत्याख्यानी भाषा है । (७) इच्छानुलोमाकोई किसी कार्य को शुरू करने से पहले किसी से पूछे तब यह कहना कि 'आप इसे करिए, मुझे भी यही पसन्द है' यह इच्छानुलोमा भाषा है। (८) अनभिगृहीताएक साथ अनेक कार्य उपस्थित होने पर कोई किसी से पूछे कि- 'इस समय कौन-सा काम करूँ ?' तब वह कहे कि 'जो तुम्हें सुन्दर मालूम हो,उसे करो', यह अनभिगृहीता भाषा है । (६) अभिगृहीता-- 'इस समय इसे करो इसे मत करो,इस प्रकार की भाषा अभिगृहीता है, (१०) संशयकरणी-अनेक अर्थों को प्रगट करने वाला एक शब्द कह देना संशयकरणी है, जैसे कोई कहे कि सैन्धव ले आओ। सैन्धव शब्द नमक, घोड़ा, वस्त्र आदि अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता है, इसलिए ऐसी अनिर्धारित वाणी संशय करणी है । (११) व्याकृता-जिसका अर्थ स्पष्ट हो, ऐसी भाषा, (१२) अव्याकृताजिसका अर्थ अतिगम्भीर हो, ऐसी गूढ या अव्यक्त भाषा। १ भाषा के विषय में विशेष जानकारी के लिए प्रज्ञापनासूत्रके भाषापद का अवलोकन करें। -संपादक
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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