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________________ | * ९० * * पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * पकड़कर मोक्ष की राह बताते हैं, क्योंकि गुरु सदा भावपूर्वक अविचल मोक्ष निवास के कामी रहते हैं। __जीवन में गुरु का महत्त्वपूर्ण स्थान है। क्या सममुच आप संसार से-कर्म से अब रहित होना चाहते हो? मृत्यु का निवारण चाहते हो? अनन्त जन्मों से विभिन्न रूप में अनेक माताओं की गोद में जन्म लेकर अब जन्म का अन्त चाहते हो? तो आइए परम गुरु माता की गोद में। गुरु धर्म का रहस्य समझाते हैं, साथ-साथ मोक्ष का मूल प्रदान करते हैं। परम देव से मिलन कराना इन महागुरु का ही काम है। इनके अभाव में देव मिलन और धर्म का भावन दोनों अपूर्ण हैं। जन्म-जन्म के पापों को दुष्कर्मों को चकनाचूर करने की महाशक्ति इस परम वत्सला गुरु माता. के कृपाकर-कमलों में है। हे साधक ! भव जल से पार कराने वाले गुरु ही हैं। क्योंकि हमारी जीवनरूपी नाव के खेवैया गुरु हैं। जो स्वयं तिरते हैं और अन्य को भी तारते हैं। माँ बच्चे में सुसंस्कार भरती है, उसे भली शिक्षित करती है। उसी प्रकार गुरु शिष्य में शुभ संस्कारों का बीजारोपण करते हैं और उसे ज्ञान दान द्वारा सुशिक्षित करते हैं। सुसंस्कार-सम्पन्न बनाते हैं। गुरु सगा-जिस प्रकार सगे-सम्बन्धी समय-समय पर सहायक होते हैं। उनमें आपस में निकटता होती है। अपनत्वभाव से सम्बन्धी जन दुःख-सुख में साथ देते हैं। उसी प्रकार गुरु शिष्य को अपना समझकर सगे-सम्बन्धी के तुल्य जानते हुए वात्सल्यभाव रखते हैं। अपनत्वभाव से उसे समझाते हैं और सही मार्गदर्शन करते हैं। गुरु पिता-जैसे पिता पुत्र को बुराइयों से रोकता है, कुमार्ग से हटाता है, कुसंगति से दूर करता है। अगर पुत्र से कोई अपराध हो जाता है, उसे दण्डित भी करता है, कारोबार में लगाता है, प्रत्येक कार्य में सुशिक्षित करता है, उसे निपुण बनाता है। वैसे ही गुरु भी अपने शिष्य को बुराइयों से बचाता है। किन्तु उससे कोई अपराध हो जाता है, दण्ड देकर उसका सुधार करता है। ज्ञान-ध्यान में लगाकर निपुण बनाता है। स्वाध्याय कराकर विद्वान् एवं एक अच्छा कवि, लेखक, व्याख्याता, हर कला में निपुण बनाता है। शिष्य की हर कमी को दूर कर उसके जीवन को शुद्ध तथा सुयोग्य वनाता है। गुरु भूप-भूप का अर्थ है-राजा। ‘ताओ उपनिषद्' में कहा गया है जो देश के कड़े बोल सहता है, वही देश का स्वामी है। जो देश के लिए दुःख सहता
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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