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________________ * दूसरा फल : गुरु-पर्युपास्ति : गुरु-सेवा * * ८९ * | वस्तुतः जिस प्रकार प्रतिमा मूर्तिकार के द्वारा गढ़ी जाती है, ठीक उसी प्रकार मानव अपने गुरु के द्वारा गढ़ा जाता है और तभी वह अपनी आत्मा को शुद्ध बनाता हुआ एक दिन परमात्मपद को भी प्राप्त कर. जगत् पूज्य बन सकता है। कहा भी है "गुरु कारीगर सारिखा, टांची वचन विचार। .. पत्थर से प्रतिमा करें, पूजा लहै अपार॥" अर्थात् जिस प्रकार शिल्पकार अनघड़ पत्थर को घड़कर उसे देवता की, पात्र की या वस्तु की आकृति प्रदान करता है। उसी प्रकार गुरु शिष्य के अवगुणों को दूर कर, उसमें गुणों का समावेश करके उसे जगत् पूज्य बना देता है। ___ जिस प्रकार उपरोक्त व्यक्ति अपनी-अपनी वस्तुओं को काट-छाँटकर सुधार करते हैं, इसी प्रकार गुरु शिष्यों का सुधार करने वाले, सदा उपकार करने वाले हैं। हम उन पर बलिहारी जाते हैं। आगे पूज्यपाद, कविरत्न श्री त्रिलोक ऋषि जी महाराज शेष और उपमाओं पर प्रकाश डालते हुए कह रहे हैं गुरु मित्र-अच्छा मित्र अपने मित्र के पापों का निवारण करता है और उसे हित में लगाता है तथा उसकी गुप्त बातों को छुपा लेता है और गुणों को प्रकट करता है। विपत्ति के समय अर्थात् विपत्ति के आने पर साथ देता है और समय आने पर दान देता है, सहायता करता है। यह समित्र की पहचान है। किसी कवि ने भी कहा है "मित्र ऐसा कीजिए, जैसे लोटा डोर। गला फँसावे अपना, शीतल करे जु और। मित्र ऐसा कीजिए, ढाल सरीखा होय। . सुख में तो पीछे रहे, दुःख में आगे होय॥" जिस प्रकार मित्र अपने मित्र की विपत्ति के समय सहायता करता है या संकटकाल के समय में सहायक होता है। उसी प्रकार गुरु शिष्य के प्रत्येक कष्ट को दूर करते हैं। जैसे मित्र समय-समय पर अच्छी सलाह देता है, उसी प्रकार गुरु शिष्य का मार्गदर्शन करता है। मित्र के समान व्यवहार करता है। गुरु माता-जैसे माता बच्चे में सुसंस्कार भरती है, माता जैसे अँगुली पकड़कर चलना सिखाती है और उसे भलीभाँति शिक्षित करती है। वैसे गुरु (माता) बाँह
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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