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________________ में आने लगी और उसी के साथ उसके सपनों का महल गड़बड़ाने लगा। अब क्या होता है डॉली के साथ? क्या वह अपने महल को सम्हाल पाएगी या फिर कोई हवा का झोंका आएगा जो उसके महल को तहस-नहस कर देगा? अपने महल को आधार देने के लिए डॉली ने अपनी माँ से सहायता की अपेक्षा से उन्हें फोन करने के लिए रिसिवर उठाया और खुशखबरी जानने के लिए उत्सुक बनी सुषमा के घर भी फोन की घंटी बज उठी। पर क्या यह फोन खुशबू के पियर से ही है या कहीं ओर से? कहीं यह फोन डॉली का तो नहीं? क्या यह सुषमा के चेहरे पर खुशी लाता है या आँखों में आँसू? क्या यह फोन सुषमा के भूतकाल के दुःखों को फिर से ताज़ा कर देता है या उसके भविष्य को खुशियों से भर देता है? क्या इस फोन से सुषमा के सपनों का महल टूट जाता है या फिर डॉली के। आईये देखते है जैनिज़म के अगले खंड 'टूटा सपनों का महल' में ...... के संस्कारों की नींव RREARSA जैनिज़मके पिछले खंड में आपने देखा कि जयणा द्वारा विरासत में मिली संस्कारों की धरोहर मोक्षा की जिंदगी में कितनी मददगार साबित हुई। इन्हीं संस्कारों के आधार पर मोक्षा ने अपनी सासुमाँ का दिल जीतकर पूरे परिवार में प्रसन्नता के साथ-साथ धर्ममय वातावरण खड़ा कर दिया। इस तरफ मोक्षा के पियर में उसकी माँ जयणा ने अपने प्रेम और वात्सल्य के बल पर दिव्या को बहू से बेटी बना दिया था। जयणा के हँसते-खेलते परिवार में खुशियाँ और भी बढ़ गई जब परिवारजनों को पता चला कि दिव्या माँ बनने वाली है। ___ ससुराल में आने के बाद धर्ममय वातावरण में जुड़ जाने के कारण दिव्या यह जानती थी कि गर्भस्थ शिशु को पूर्ण रुप से संस्कारित करने के लिए गर्भावस्था से ही संस्कार देने चाहिए। अब गर्भ धारण करने के बाद दिव्या के मन में यह जिज्ञासा हुई कि यदि बच्चा सामने हो तो हम उसे संस्कार दे सकते है परंतु गर्भस्थ शिशु को संस्कार किस प्रकार देना? साथ ही अपनी ननंद मोक्षा के जीवन को देखकर दिव्या के मन में भी यही इच्छा थी कि उसकी सन्तान भी मोक्षा की तरह सुसंस्कारित बनकर स्व-पर का कल्याण करें। अपनी इन्हीं शंकाओं और जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करने के लिए एक दिन -) दिव्या : मम्मीजी ! यदि आपके पास समय हो तो मुझे आपसे कुछ बात करनी है। जयणा : अरे बेटा ! इसमें समय की क्या बात है? बैठो और बोलो क्या बात है? दिव्या : मम्मीजी ! मोक्षा दीदी के जीवन को देखकर ऐसा विचार आता है कि आपने उन्हें कैसे :
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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