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________________ (प्रिन्स भी उसके साथ ढूँढने लगा और इतने में सुषमा वहाँ आई।) सुषमा : अरे ! तुम दोनों मिलकर क्या ढूँढ रहे हो? खुशबू : मम्मीजी वो.....वो.. प्रिन्स : मॉम आपने जो शादी में सात हज़ार की हीरे की नथनी दी थी वह मिल नहीं रही है, लगता है खो गई। सुषमा : प्रिन्स गाड़ी निकालो। (ऐसा कहकर सुषमा, प्रिन्स और खुशबू को लेकर ज्वेलर्स शॉप में गई और खुशबू को 16 हज़ार की हीरे की नई नथनी दिलायी। घर आते ही खुशबू ने सीधे अपनी माँ को फोन किया) खुशबू : हेलो माँ, मुझे आपसे भी सवायी माँ मिल गई है। अब आप मेरी चिंता मत करना। इस प्रकार सुषमा के बदलते व्यवहार से खुशबू का भी व्यवहार बदल गया। अपने घर की परिस्थिति को साक्षात् बदलते देख अब सुषमा समय-समय पर जयणा से मिलती तथा उससे सुझाव लेती। वह खुशबू को भी जयणा के यहाँ अकसर ले जाया करती। एक-दूसरे के घर इस तरह आनेजाने से जयणा और सुषमा के साथ-साथ दिव्या और खुशबू भी अच्छी सहेलियाँ बन गई। जयणा और दिव्या समय समय पर सुषमा और खुशबू को धर्म में जोड़ने लगी। इस प्रकार दोनों परिवारों के संबंध अच्छे हो गये। अब सुषमा के घर में नित्य जिनपूजा, आठम-चौदस रात्री भोजन का त्याग, कंदमूल त्याग, सामायिक आदि नियमों का पालन शुरु हो गया। डॉली के जाने के बाद एक लंबे काल के बाद गम के वातावरण में रहने के बाद सुषमा के जीवन में फिर से खुशियाँ आ गई। सचमुच अब सुषमा डॉली को पूरी तरह भूल गई थी। और इन खुशियों को तब बढ़ावा मिला जब खुशबू ने गर्भ धारण किया। अब सुषमा खुशबू के गर्भ के विषय में थोड़ी भी लापरवाही नहीं रखती थी। जयणा को पूछकर उसी अनुसार खुशबू से गर्भ का पालन करवाती थी तथा खुशबू भी अपने बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए अपनी सासुमाँ की हर आज्ञा का खुशी से पालन करती। प्रथम बार गर्भ धारण करने के कारण नौवे महिने में खुशबू के पियर वाले उसे ले गए। अब तो सुषमा हमेशा फोन के इंतजार में रहती थी कि कब फोन आए और उसे दादी बनने की खुशखबरी मिले। इस तरफ जिंदगी के सुख रुपी पहलु देखने के बाद अब डॉली के दुःखी जीवन की शुरुआत हो गई थी। समीर के साथ मिलकर उसने जो सपने संजोए थे, शुरुआत के दिनों में समीर ने वह सपने साकार कर दिखाए। परंतु आखिर सच्चाई नहीं छुपती। धीरे-धीरे समीर की सारी सच्चाई डॉली की नज़रो
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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