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________________ श्री गीता दर्शन भाग-7 उस चित्रकार ने कहा, यह प्रतीक है कि मृत्यु की कुल्हाड़ी सभी में करवट कौन बदलवाए! और वजनी शरीर है, भारी; सैनिक हैं। को काट डालती है, तोड़ डालती है। अगस्तीन ने कहा, और सब | और बदलाओ उनको करवट, तो नींद टूट जाएगी। ठीक है; कुल्हाड़ी अलग कर दो और हाथ में चाबी दे दो। तो मैंने उसको कहा कि मैं तुझे एक मंत्र देता हूं; उनके कान में चित्रकार ने कहा, कुछ समझ में नहीं आया! चाबी से क्या अभ्यास करना। दूसरे दिन उसने अभ्यास करके मुझे कहा कि लेना-देना? अगस्तीन ने कहा, जो हमारा अनुभव है, वह यह है अदभुत मंत्र है! कि मृत्यु सिर्फ एक नया द्वार खोलती है; किसी को मिटाती-करती | छोटा-सा मंत्र था। मैंने कहा, उनके कान में कहना राइट टर्न। नहीं। इसलिए चाबी! नया द्वार खोलती है। मिलिट्री के आदमी। जिंदगीभर का अभ्यास। मंत्र काम कर लेकिन नया दार उनके लिए खोलती है. जो होशपर्वक मरते हैं। गया। जैसे ही उसने कहा राइट टर्न उन्होंने नींद में अपनी करवट जो बेहोशी से मरते हैं, उनकी तो गरदन ही काटती है। उनके लिए | बदल ली। तो मृत्यु के हाथ में कुल्हाड़ी ही है। मौत के क्षण में तो आप तभी होश रख पाएंगे, जब जिंदगीभर शरीर छोड़कर जाते हुए को हम नहीं जान पाते, क्योंकि हम | अभ्यास किया हो। और वह इतना गहरा हो गया हो कि मौत भी बेहोश होते हैं। और हम तभी जान पाएंगे, जब मृत्यु में होश सधे। | सामने खड़ी हो, तो भी चित्त बेहोश न हो। अचेतन तक, इसका अभ्यास करना होगा। इसका इतना अभ्यास करना होगा कि अनकांशस तक पहंच जाना जरूरी है। यह चेतन से उतरते-उतरते अचेतन में चला जाए। और जब तक इसलिए समर्पण का जितना से जितना प्रयोग हो सके, जितना यह अचेतन में न चला जाए अभ्यास...। | ज्यादा प्रयोग हो सके; जिन-जिन स्थितियों में आप अपने को खो इसलिए योग दो शब्दों का उपयोग करता है. वैराग्य और सकें.खोएं। अपने को सम्हालें मत। क्योंकि वह खोना इकट्ठा होता अभ्यास। बस, प्रक्रिया पूरी उन दो में समाई हुई है। वैराग्य की हमने | जाएगा। रत्ती-रत्ती इकट्ठा होते-होते उसका पहाड़ बन जाएगा। और बात की, क्या है वैराग्य। और दूसरा है कि उसका गहन अभ्यास, | जब मौत आएगी, तो आप होशपूर्वक जा सकेंगे। रोज-रोज साधना। ताकि मरने के पहले आपके भीतर इतना उतर | और जो व्यक्ति होशपूर्वक मर गया, उसका दूसरा जन्म जाए कि मृत्यु उसको हिला न सके। होशपूर्वक होता है। क्योंकि जन्म और मृत्यु एक ही द्वार के दो हिस्से मेरे एक मित्र हैं। मिलिट्री में मेजर हैं। उनकी पत्नी मेरे पड़ोस में हैं। इस तरफ से जब हम प्रवेश करते हैं, तो मृत्यु; और जब उसी रहती थीं। वे तो कभी-कभी आते थे। जगह-जगह उनकी बदलियां दरवाजे से उस तरफ निकलते हैं, तो जन्म। जैसे एक ही दरवाजे पर होती रहती थीं। पत्नी उनकी एक कालेज में प्रोफेसर थीं। लिखा होता है, भीतर। तो बाहर से जब हम प्रवेश करते हैं, तो जब भी मित्र आते. तो पत्नी थोडी परेशान हो जाती। क्योंकि भीतर. वह बाहर जब हम खडे थे दरवाजे के। लेकिन जैसे ही और तो सब ठीक था, बहुत प्यारे आदमी हैं, लेकिन रात में घुर्राते दरवाजे के भीतर गए, दूसरा जगत शुरू हो गया। बहुत थे। और पत्नी अकेली रहने की आदी हो गई थी वर्षों से। तो मृत्यु, इस शरीर से बाहर; और जन्म, दूसरे शरीर में भीतर। जब भी साल में महीने, दो महीने के लिए आते, तो उसकी नींद | लेकिन प्रक्रिया एक ही है। अगर आप होशपूर्वक मर सकते हैं, तो हराम हो जाती थी। आपका जन्म होशपूर्वक होगा। और तब आपको पिछले जन्म की उसने मुझे एक दिन कहा कि बड़ी अजीब हालत है। कहते भी याद रहेगी। और तब पिछले जन्म के अनुभव व्यर्थ नहीं जाएंगे। अच्छा नहीं मालूम पड़ता; वे कभी आते हैं। लेकिन मेरी नींद उनका निचोड़ आपके हाथ में होगा। और तब आपने जो भूलें मुश्किल हो जाती है। या में यह कहूं कि में दूसरे कमरे में सोऊं, तो पिछले जन्म में की, वे आप इस जन्म में न कर सकेंगे। अन्यथा हर भी अशोभन मालम पडता है. इतने दिन के बाद पति घर आते हैं। बार वही भल है। और यह चक्र दष्टचक्र है, विशियस सर्किल है। और रात में तो सो ही नहीं पाती। हर बार भूल जाते हैं; फिर वही भूल करते हैं। मैंने उनसे पूछा कि मुझे पूरा ब्यौरा दो। ऐसा आप बहुत बार कर चुके हैं। यही काम जो आप आज कर तो उसने कहा कि जब भी वे बाएं सोते हैं, तो घुर्राते हैं। जब दाएं रहे हैं, इसको आप अनंत बार कर चुके हैं। यही शादी, यही बच्चे, बदल लेते हैं करवट, तो ठीक सो जाते हैं। पर रात में उनको सोते यही धन, यही पद-प्रतिष्ठा; यही लड़ाई-झगड़ा, कलह, अदालत, 224
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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