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________________ * मूल-स्रोत की ओर वापसी * उतरना है; ऊंचाई का पाना नहीं है। सीधा खड़ा हो जाए तो परमात्मा है। पर जैसा हम संसार को देखते जैसे वृक्ष ऊपर की तरफ बढ़ता है, ऐसे हम संसार में ऊपर की | | हैं, उसे हम मानते हैं कि वह सीधा है। इसलिए समस्त धार्मिक तरफ नहीं बढ़ रहे हैं। हम संसार में जितने बढ़ते हैं, उतने नीचे की साधनाएं सांसारिक आदमी की दृष्टि में उलटी मालूम पड़ती हैं। तरफ बढ़ते हैं। जैसा हम देखते हैं, ठीक उससे उलटी अवस्था है। | सांसारिक मन जो करता है, उसे सीधा मानता है। इसलिए संन्यासी जिसे हम विकास कहते हैं, वह पतन है। को सांसारिक मन उलटा मानता है। लेकिन जो परमात्मा की दृष्टि इसी कारण पूरब का समग्र चिंतन त्यागवादी हो गया। हो जाने के | को, इस उलटी बहती धारा को ठीक से समझ लें, उनके लिए संसार पीछे यही कारण था। त्याग का अर्थ है, संसार जिसे विकास कहता | | में उलटे होकर जीना ही एकमात्र सीधे होने का उपाय है। है, उसे हम छोड़ देंगे। संसार जिसे उपलब्धि कहता है, उसे हम तुच्छ | __संसार का गणित जिसको सीधा कहता है, उसे आप थोड़ा समझेंगे। संसार जिसे भोग कहता है, वह त्याग के योग्य है। | सोच-समझकर स्वीकार करना। संसार में जिन्हें लोग बुद्धिमान एक आदमी धन इकट्ठा करता चला जाता है। वह विकास कर समझते हैं, उनकी बुद्धिमानी पर थोड़ा शक करना। संसार जिसको रहा है। पश्चिम में उसे विकासमान कहा जाएगा। पूरब में हमने उन सफलता कहता है, उसे आंख बंद करके आलिंगन मत कर लेना। लोगों को विकासमान कहा...बुद्ध ने धन छोड़ दिया, महावीर ने क्योंकि सभी कहते हैं, इसलिए कोई बात सत्य नहीं हो जाती। साम्राज्य छोड़ दिया, तो हमने विकासमान कहा। अल्बर्ट आइंस्टीन को जर्मनी से निकल जाना पड़ा था। हिटलर, पश्चिम में इकट्ठा करना विकास है। पूरब में छोड़ना विकास है। उसके नाजी प्रचार और यहूदियों के विरोध के कारण। और जब पश्चिम में कितना आपके पास है, उससे आपकी ऊंचाई का पता | आइंस्टीन अमेरिका पहुंचा, तो उसे खबर मिली कि हिटलर ने सौ चलता है। परब में कितना आप छोड सके. कितना कम आपके | वैज्ञानिक तैनात किए हैं यह सिद्ध करने को कि आइंस्टीन की सारी पास बचा...जिस दिन आप अकेले ही बच रहते हैं और कुछ भी | खोज गलत है। सौ वैज्ञानिकों ने बड़ी मेहनत भी की। पास नहीं होता, उस दिन पूरब विकास मानता है। आइंस्टीन को जब खबर मिली, तो उसने हंसकर कहा कि अगर उलटे वृक्ष की धारणा में ये सारी बातें समाई हुई हैं। | मैं गलत हूं तो एक वैज्ञानिक उसे सिद्ध करने को काफी है, सौ की कुछ और बातें, फिर हम सूत्र में प्रवेश करें। | कोई जरूरत ही नहीं। और अगर मैं गलत नहीं हूं, तो सारी दुनिया यह वृक्ष कितना ही उलटा हो, लेकिन परमात्मा से जुड़ा है। यह के वैज्ञानिकों को भी हिटलर इकट्ठा करे तो भी—तो भी मैं गलत कितनी ही दूर निकल गया हो, लेकिन इस वृक्ष की | | हो जाने वाला नहीं हूं। और हिटलर को सौ की जरूरत पड़ रही है, शाखा-प्रशाखाओं में उसी का ही प्राण प्रवाहित होता है। शाखा वह इसीलिए...। कितनी ही दूर हो, जड़ से जुड़ी होगी। जड़ से टूट जाने का कोई सत्य तो अकेला भी काफी है। असत्य को भीड़ चाहिए। असत्य उपाय नहीं है। की शक्ति भीड़ से पैदा होती है। असत्य के पास अपनी कोई शक्ति संसार विपरीत हो सकता है, लेकिन परमात्मा का अभिन्न हिस्सा | नहीं है। है। और हम संसार में कितने ही दूर निकल जाएं, हम उससे जुड़े संसार जिसे ठीक कहता है, आप भी उसे ठीक मान लेते हैं। ही रहते हैं। क्षणभर को भी उससे अलग होने का कोई उपाय नहीं। क्योंकि भीड़ की एक शक्ति है। लेकिन उससे वह ठीक नहीं हो उसका ही प्राण-रस संसार में भी प्रवाहित है। जाता। ठीक होने के कोई प्रमाण भी नहीं मिलते। इसलिए एक दूसरी अनूठी धारणा पूरब में पैदा हुई। वह यह कि | ___ समझें, एक राजनीतिज्ञ सफल है, क्योंकि बड़े पद पर है। संसार पूरब त्यागवादी है, लेकिन संसार को परमात्मा का शत्रु नहीं | उसे सफलता कहता है। और उस सफलता के भीतर खुशी की एक मानता। संसार भी परमात्मा का अभिन्न भाग है। नीचे की तरफ | किरण भी नहीं है। उस सफलता के भीतर आनंद का एक फूल भी बहती हुई धारा है, लेकिन धारा उसी की है। धारा का रुख बदलना कभी नहीं खिलता। और खुद राजनीतिज्ञ से पूछे। उसकी सफलता है। धारा को उसके मूल उदगम की तरफ ले जाना है। लेकिन धारा बिलकुल रेगिस्तान जैसी सूखी है! उसे कुछ भी मिला नहीं है। से कोई शत्रुता और कोई घृणा नहीं है। दूसरे महायुद्ध में जनरल मैकार्थर का बड़ा नाम था। एक हंसोड़ परमात्मा अगर उलटा खड़ा हो जाए तो संसार है। संसार अगर फिल्म अभिनेता...मैकार्थर जिस टुकड़ी का मुआयना करने जापान 169
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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