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________________ * गीता दर्शन भाग-7 ] कोई हंसा। किसी ने कहा, अरे मूर्ख, तू अपने घर के सामने बैठा | | शिष्य गुरु के पास इसलिए आ रहा है कि वह जानता है कि जहां है। तू अपने घर की सीढ़ी पर ही बैठा हुआ है। उसने कहा, तुमने | | वह है, वहां कुछ भी नहीं है। और जहां सब कुछ है, वह बहुत दूर मुझे इतना नासमझ समझा हुआ है कि अपने घर की सीढ़ी पर | | है मंजिल। बड़ी कठिन है वहां पहुंचने की यात्रा। किसी से पूछना बैठकर मैं तुमसे पूछूगा? | पड़ेगा, कोई गाइड चाहिए। इसीलिए तुम्हारे पास आया है। और जिसने भी उसे बताने की कोशिश की कि तू अपने घर की सीढ़ी | | अगर तुम उससे सीधा-सीधा कह दो, यहां आने का कोई सवाल पर बैठा है, उसने समझा कि वह उसे धोखा देने की कोशिश कर | | नहीं है, क्योंकि तुम वहां हो ही, मंजिल में ही तुम रह रहे हो; तब रहा है। अगर मैं अपने घर की सीढ़ी पर बैठा हूं, तो मैं पूछंगा क्यों? | | वह कोई दूसरा गुरु खोजेगा, जो उसे ले जाए। भीड़ इकट्ठी हो गई। उसकी मां, बूढ़ी मां, शोरगुल सुनकर | | तो सदगुरु को तुम्हारी नासमझी के साथ योजना बनानी पड़ती मकान के बाहर आई। आधी रात, देखा उसका बेटा रो रहा है और | | है। वह बैलगाड़ी जोतता है, ताकि तुम्हें भरोसा आ जाए कि ठीक भीड़ खड़ी है। और वह पूछ रहा है, मेरा घर कहां है? तो उसकी | | है। वह तुम्हें बिठाता है। वह गाड़ी चलाता है। वह तुम्हें काफी मां ने उसके सिर पर हाथ रखा और कहा कि बेटा, तू पागल हो | | चक्कर लगाता है। और उसी जगह तुम्हें ले आना है, जहां तुम थे, गया! यह तेरा घर है। जहां से तुम्हें यात्रा पर शुरू किया गया था। उसने उसको देखा। वह पहचाना तो नहीं। देखा, कोई स्त्री खड़ी | __समस्त गुरुओं का एक ही उपाय है कि तुम्हें कर्म की व्यर्थता, है। उसने पैर पकड़ लिए और कहा, माई, तू कृपा कर और मुझे मेरे | | विधि की व्यर्थता बोध में आ जाए। प्रयत्न व्यर्थ है। निष्प्रयत्न घर का पता बता दे। | उसकी उपलब्धि है। पर यह आने के लिए काफी भटकना जरूरी तभी पड़ोस का एक आदमी, जो खुद भी नशे में था, वह अपनी है। और अपने ही घर को पहचानने के लिए न मालूम कितने घरों, बैलगाड़ी जोतकर आ गया। उसने कहा कि बैठ, तू मानता ही नहीं, | | कितने द्वारों की तलाश करनी पड़ती है। जहां तुम हो, वहां आने के तो मैं तुझे पहुंचा दूंगा। | लिए तुम्हें करीब-करीब पूरे संसार का चक्कर लगा लेना होता है। उसकी मां रोती है। वह कहती है, इसकी बैलगाड़ी में मत बैठना, नहीं तो यह न मालूम तुझे कहां ले जाए। तू घर पर है ही। अगर तू कहीं भी गया, तो दूर निकल जाएगा। तीसरा प्रश्नः गुणातीत में जाने के लिए आपने तो करीब-करीब हालत हमारी ऐसी ही है। अगर कोई कहे कि साक्षी-भाव का प्रयोग बताया। लगता है, आपकी जिसको आप खोज रहे हैं, वह आपके भीतर है, तो आप कहते हैं, सारी शिक्षा का केंद्रीय तत्व साक्षीत्व है। वर्षों से मैं तो क्या मैं इतना मूढ़ हूं कि मुझे पता नहीं! तो आपके लिए बैलगाड़ी | आपको सुनता हूं और संभवतः साक्षीत्व का प्रयोग जोतनी पड़ती है। उसमें आपको बैठाना पड़ता है कि चलिए, भी करता हूं। लेकिन क्षितिज की तरह वह मुझसे जहां विराजिए। आपको पहुंचा देंगे आपके घर तक। का तहां खड़ा मालूम होता है। कृपा करके बताएं कि इसमें जो गुरु है, वह तुम्हें बैलगाड़ी पर बिठा-बिठाकर | मेरी भूल क्या है? थकाएगा। और घुमा-फिराकर उसी जगह ले आएगा, जहां से बैलगाड़ी की यात्रा शुरू हुई थी। लेकिन इस बीच बैलगाड़ी में तुम्हें इतने दचके देगा कि तुम्हारा होश आ जाए, तुम्हारी बेहोशी टूट न स इतनी ही भूल है कि यह साक्षी-भाव को भी आप जाए, नींद टूट जाए। क्रिया बना लिए हैं। आप सोचते हैं, आप साक्षी-भाव तुम्हारी मंजिल दूर नहीं है। तुम्हारा होश कायम नहीं है। जो पाना ___ साधते हैं। साक्षी-भाव भी आपको कुछ करने जैसा है, वह तो यहां है। लेकिन जिसे पाना है, वह बेहोश है। और उससे मालूम होता है। एक भूल। सीधा यह कह देना कि तुम वहीं खड़े हो, जहां पाना है, वह तुम्हारी साक्षी-भाव कृत्य नहीं है, समस्त कृत्यों के प्रति बोध का भाव मानेगा नहीं। अगर उसको यही समझ में आ जाता, तो वह तुमसे | है। इसलिए साक्षी-भाव स्वयं कृत्य नहीं है। साक्षी-भाव के लिए पूछता ही नहीं। कुछ करना नहीं पड़ता। जो भी आप करते हैं, उसको देखना है।
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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