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________________ * अव्यभिचारी भक्ति की सार्थकता समझ में आ जाती है। और होना और करना बिलकुल सकता है इस मछली के लिए! विपरीत है। करना बाहर है, होना भीतर है। जब करना बिलकुल ___ एक ही उपाय है कि किसी भांति इस मछली को पानी के बाहर बंद हो जाता है, तो होने का सूर्य प्रकट होता है, फूल खिलता है। | खींच ले, ताकि यह तड़फने लगे। और यह तड़फ जाए रेत पर दो किसी भी भांति प्रयत्न से तुम्हें छुटकारा चाहिए। क्षण, वापस इसको सागर में डाल दे, तो यह फौरन पहचान जाएगी लेकिन अगर तुमसे सीधा कह दिया जाए कि तुम सब करना | | कि मैं सागर में सदा से थी। लेकिन जब तक यह सागर से अलग छोड़ दो, तो तुम्हें बात समझ में ही न आएगी। तुम्हें इंच-इंच तैयार नहीं हुई, तब तक इसको पता भी नहीं चल रहा है। करना पड़ेगा। एक-एक मार्ग से तुम्हें ले जाना पड़ेगा। और ___ आप परमात्मा में हैं, जैसे मछली सागर में है। जैसे मछली सागर एक-एक मार्ग व्यर्थ होने लगे और तुम्हें दिखाई पड़ने लगे कि करने | | के बिना नहीं हो सकती, आप परमात्मा के बिना नहीं हो सकते हैं। से कछ होने वाला नहीं है। क्योंकि जो है. वह मेरे बिना किए हए वह आपके होने का ढंग है। वह आपके होने का आधार है। मेरे भीतर मौजूद है। अगर मैं एक क्षण को भी कर्म को छोड़ दूं, | तो गुरु क्या करे? आप उससे पूछते हैं, मैं क्या करूं परमात्मा कर्म की चंचलता हट जाए, तो उस अचंचल स्थिति में वह प्रकट | को पाने के लिए? और वह देख रहा है कि मछली पानी में तैर रही हो जाए। है। और पूछती है, पानी को पाने के लिए क्या करूं? तो आपको लेकिन हम अपने को धोखा देने में कुशल हैं। मनुष्य की बड़ी | कुछ विधि बताता है। वे विधियां सब ऐसी हैं कि जिनसे आप तड़फ से बड़ी कुशलता है, सेल्फ डिसेप्शन, आत्मवंचना। और हम इस | | जाएं; जिनसे आप क्षणभर के लिए उस बेचैनी से भर जाएंगे, जो तरकीब से धोखा देते हैं कि हम खुद ही नहीं पहचान पाते कि हमने | | आपको सागर से अलग कर दे एक क्षण को भी। और जैसे ही वह अपने को धोखा दिया। अलग होने की व्यर्थता और पीड़ा आपको पता चलेगी, आप वापस मुल्ला नसरुद्दीन एक बाजार से गुजर रहा है। एक आम वाले का | | सागर में गिर जाएंगे। वह सागर में गिरना ही परमात्मा से मिलना ठेला खड़ा है और आम वाला उस तरफ मुंह करके किसी से बात | | हो जाएगा। कर रहा है। तो उसने एक आम उठाकर अपने झोले में डाल लिया। | सारी खोज की दुविधा, समस्या, उलझाव यही है कि हम उसे फिर उसकी आत्मा कचोटने लगी। फिर उसे लगा कि चोरी करना तो खोज रहे हैं जो मिला ही हुआ है। और गुरु को आपको वही ठीक नहीं। और बेचारे आम वाले को धोखा दे दिया। गरीब आदमी दिखाना है, जो आप देख ही रहे हैं। क्या किया जाए? है; और गरीबं को धोखा देना उचित नहीं है। यह मैंने पाप किया। मैं एक कहानी कहता रहा हूं। एक आदमी ने शराब पी ली। तो वह वापस गया। झोले से आम निकाला और आम वाले से शराब पीकर रात वह अपने घर लौटा, आदतवश। कहा कि आम बदल दो। आम वाले ने समझा कि खरीदा होगा | | घर आने के लिए कोई होश की जरूरत तो किसी को भी नहीं इसने, तो उसने बेचारे ने बदल दिया। तब वह प्रसन्नता से घर | | होती। अपने घर तो आदमी यंत्र की तरह चला आता है। कब मुड़ना लौटा। उसने कहा, पहला तो मैंने चुराया था, दूसरा उसने खुद ही | है बाएं, कब दाएं; किस गली से जाना है; कहां से आना है। अपने दिया है। अब आत्मा में कोई कांटा नहीं चुभ रहा है। अब वह | | घर आने के लिए कोई होश की जरूरत किसी को भी नहीं होती है। बिलकुल प्रसन्न घर जा रहा है; क्योंकि दूसरा उसने खुद दिया है। | आप भी बेहोश ही अपने घर आते हैं। साइकिल का हैंडल मुड़ अब कोई सवाल ही नहीं है। जाता है, गाड़ी का व्हील मुड़ जाता है, पैर घूम जाते हैं। आप अपने करीब-करीब आप यही कर रहे हैं। जरा-सा हेर-फेर कर लेते | घर आ जाते हैं। हैं और सोचते हैं, सब हल हो गया। ऐसे हल नहीं होगा। यह | | वह बेहोश तो था, अपने घर पहुंच गया। लेकिन घर के सामने धोखा चल नहीं सकता। आपको समझना ही होगा कि मूल | | जाकर उसको खयाल आया कि यह मेरा घर है या नहीं! आंखों में समस्या क्या है। धुंध थी; भीतर नशा था। कुछ ठीक साफ समझ नहीं। चीजें घूमती मूल समस्या इतनी है कि जो आपको मिला ही हुआ है; उसको | मालूम पड़ रही थीं। तो बैठ गया अपनी सीढ़ियों पर और आप पाने की कोशिश कर रहे हैं। जैसे एक मछली सागर में सागर | | आस-पास से गुजरने वाले लोगों से पूछने लगा कि कोई मुझे मेरे को खोजने की कोशिश कर रही हो। बड़ी कठिनाई है। गुरु क्या कर | घर का पता बता दो! 155
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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