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________________ गीता दर्शन भाग - 3 > विक्षिप्त हो रहा है। अगर किन्हीं ध्वनियों को सुनकर आदमी पागल हो सकता है, तो क्या यह मानने में बहुत कठिनाई है कि किन्हीं ध्वनियों को सुनकर आदमी शांत हो जाए? अगर किन्हीं ध्वनियों को सुनकर आदमी का मन विक्षिप्त हो सकता है, तो क्या यह मानने में बहुत अड़चन होगी कि किन्हीं और ध्वनियों को, विपरीत ध्वनियों को सुनकर मनुष्य का मन समाधिस्थ हो जाए ? मंत्रयोग उसकी चेष्टा है। और इस तरह की ध्वनियां मंत्रयोग ने खोजीं, जिन ध्वनियों का उच्चार, आंतरिक उच्चार, हृदयगत उच्चार, प्राणगत उच्चार मन को नई शक्ल देना शुरू कर देता है, नया पैटर्न। प्रत्येक ध्वनि का अपना पैटर्न है, अपना ढांचा है। आप कभी ऐसा करें कि एक पतले, झीने कागज पर रेत के दाने बिछा दें। फिर नीचे से जोर से कहें, राम और रेत के दाने हिलेंगे और कागज पर एक पैटर्न बन जाएगा। आप कितनी ही बार राम कहें, वही पैटर्न रेत के कणों पर बनेगा। कहें, अल्लाह ! दूसरा पैटर्न बनेगा। फिर कितनी ही बार अल्लाह कहें, उस कागज के ऊपर वही दूसरा पैटर्न दोहरेगा। फिर एकाध कोई गंदी गाली देकर भी देखें, उसका भी अपना पैटर्न बनेगा। और एक और मजे की बात है कि गंदी गाली का जो पैटर्न बनेगा उसके ऊपर, वह बहुत कुरूप होगा। और राम का जो पैटर्न बनेगा, बहुत समायोजित, संतुलित, सुंदर, अनुपात में होगा। अल्लाह का पैटर्न बनेगा, बहुत सुंदर, बहुत समायोजित होगा। आप एक-एक शब्द को उस कागज के नीचे दोहराकर देखें कि उसका पैटर्न कैसा बनता है। जो पैटर्न रेत के दानों पर बन रहा है, वही आपके चित्त में भी बनता है। आपका चित्त एक बहुत – रेत के दाने तो कुछ भी नहींआपका चित्त तो सबसे ज्यादा संवेदनशील वस्तु है इस पृथ्वी पर । छोटी-सी ध्वनि तरंग उसको रूप देती है। हम जो शब्द सुन रहे हैं, जो बातें सुन रहे हैं, जो गीत सुन रहे हैं, रास्ते पर आवाजें सुन रहे हैं, वे हमारे एक तरह के मन को निर्मित करते हैं। योग कहता है, एक नए तरह का मन चाहिए पड़ेगा, अगर परमात्मा की तरफ जाना है। तो उन ध्वनियों का उपयोग करो, जिन ध्वनियों से परमात्मा की तरफ जाने वाला लयबद्ध मन निर्मित हो जाए। । और इसीलिए एक शब्द को ही निरंतर दोहराने की प्रक्रियाएं ईजाद की गईं। उसका कारण है। ताकि वह पैटर्न, उस शब्द से बनने वाला पैटर्न थिर हो जाए मन पर, मन पर बैठ जाए; मन उसको इंबाइब कर ले, पी ले; मन उसके साथ एकाकार हो जाए। तो नया मन निर्मित होना शुरू हो जाएगा। ध्वनिशास्त्र चित्त के रूपांतरण की बड़ी अदभुत — बड़ी अदभुत - कुंजियां खोज लिया है। हजारों साल उस तरफ मेहनत गई है। तो दूसरा तत्व योग का है, ध्वनि। पहला तत्व है, ऊर्जा। दूसरा तत्व है, ध्वनि । और तीसरा तत्व है, ध्यान, अटेंशन, दिशा । चेतना उसी दिशा में बहती है, जिस तरफ चेतना को हम उन्मुख करते हैं। जहां उन्मुख करते हैं, वहीं चेतना बहती है । और जिस तरफ चेतना बहती है, उस तरफ बहती है और शेष तरफ बहना उसका बंद हो जाता है। परमात्मा की तरफ कैसे बहे ? क्योंकि परमात्मा की कोई दिशा नहीं है, खयाल रखना। बोल रहा हूं, तो आपका ध्यान मेरी तरफ बहेगा। लेकिन | शेष सब तरफ बंद हो जाएगा। अगर कोई पीछे से आवाज कर दे, तो आपका ध्यान चौंककर उस तरफ बहेगा, लेकिन तब तक आपके संबंध मुझसे टूट जाएंगे। लेकिन परमात्मा की तो कोई दिशा नहीं है, सब दिशाओं में वह व्याप्त है— दिशाहीन, दिशातीत । तो | परमात्मा को हम किस दिशा में खोजें? कहां ध्यान ले जाएं? इस | जगत में और कुछ भी खोजना हो, तो दिशा है। परमात्मा की तो कोई दिशा नहीं, उसे हम कैसे खोजें? तो ऐसी ध्वनियां पैदा की हैं योग ने, जो दिशाहीन हैं। जैसे ओम, यह दिशाहीन ध्वनि है। अगर आप ओम का पाठ करें, तो यह ध्वनि सर्कुलर है। इसलिए ओम का जो प्रतीक बनाया है, वह भी सर्कुलर है, वर्तुलाकार है। अगर आप भीतर ओम की ध्वनि करें, तो आपको ऐसा अनुभव होगा, जैसे मंदिर के ऊपर गुंबज होती है गोल। वह गोल गुंबज ओम की ध्वनि से जुड़कर बनाई गई है, वह जो मंदिर के ऊपर अर्ध गोलाकार छप्पर है। जब आप भीतर जोर से ओम का पाठ करेंगे, तो आपको अपने सिर और चारों तरफ एक | वर्तुलाकार स्थिति का बोध होगा, दिशाहीन । यह ओम कहीं से आता हुआ नहीं मालूम पड़ेगा। सब कहीं से आता हुआ और सब कहीं जाता हुआ मालूम पड़ेगा। यह एक अदभुत ध्वनि है, जो योग ने खोजी है। इस ध्वनि के | मुकाबले जगत में कोई दूसरी ध्वनि नहीं खोजी जा सकी। इसे | इसलिए मूल ध्वनि, बीज ध्वनि... । इस वर्तुलाकार स्थिति में आप परमात्मा की तरफ उन्मुख होंगे, 1421
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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