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________________ < योग का अंतर्विज्ञान > साल से कह रहा है कि शरीर की कोई भी गति स्वेच्छा से चालित चलता है। ध्वनियों से! हो सकती है। खून भी हमारी इच्छा से चले और बंद हो सकता है। ओंकारनाथ ठाकुर इटली में मुसोलिनी के मेहमान थे-भारत शरीर का बुढ़ापा, युवावस्था भी हमारी इच्छा के अनुकूल निर्धारित के एक बड़े संगीतज्ञ। मुसोलिनी ने ऐसे ही मजाक में भोजन पर हो सकती है। शरीर की उम्र भी हम विशेष प्रक्रियाओं से लंबी और | | निमंत्रित किया था ठाकुर को-मजाक में, भोजन करते वक्त कम कर सकते हैं। मुसोलिनी ने कहा कि मैं सुनता हूं कि कृष्ण बांसुरी बजाते थे, तो एक आदमी इजिप्त में, एक सूफी योगी, अठारह सौ अस्सी में | जंगली जानवर आ जाते; गउएं नाचने लगतीं; मोर पंख फैला देते। समाधिस्थ हुआ, जीवित। और चालीस साल बाद उखाड़ा जाए, | यह कुछ मुझे समझ में नहीं आता कि संगीत से यह कैसे हो सकता इसकी घोषणा करके समाधि में, कब्र में चला गया, अठारह सौ | | है! ओंकारनाथ ठाकुर ने कहा कि कृष्ण जैसी मेरी सामर्थ्य नहीं। अस्सी में। चालीस साल बाद उन्नीस सौ बीस में कब्र खुदेगी। जो संगीत के संबंध में उतनी मेरी समझ नहीं। सच तो यह है कि संगीत बूढ़े उसको दफनाने आए थे उस चालीस साल के विश्राम के लिए, के संबंध में कृष्ण जैसी समझ पृथ्वी पर फिर दूसरे आदमी की नहीं उनमें से करीब-करीब सभी मर गए। उन्नीस सौ बीस में एक भी रही है। लेकिन थोड़ा-बहुत क ख ग, जो मैं जानता हूं, वह मैं नहीं था। जो जवान थे, उनमें से भी अनेक बूढ़े होकर मर चुके थे। आपको करके दिखा दूं कि समझाऊं! मुसोलिनी ने कहा, समझाने जो बच्चे थे, वे ही कुछ बचे थे। जो उस भीड़ में छोटे बच्चे खड़े | में तो कोई सार नहीं है। तुम कुछ करके ही दिखा दो। थे, वे ही बचे थे। कुछ न था हाथ में। खाना ले रहे थे, तो कांटा-चम्मच हाथ में उन्नीस सौ बीस तक करीब-करीब बात भूली जा चुकी थी। वह | थे। सामने चीनी के बर्तन, प्यालियां थीं। ओंकारनाथ ठाकुर ने वे तो सरकारी दफ्तरों के कागजातों में बात थी और किसी के हाथ पड़ | प्यालियां और बर्तन चम्मच-कांटे से बजाना शुरू कर दिया। पांच गई। किसी को भरोसा नहीं था कि वह आदमी अब जिंदा मिलेगा मिनट, सात मिनट और मुसोलिनी की आंख झप गई और जैसे वह उन्नीस सौ बीस में। लेकिन कतहलवश किसी को भरोसा नहीं नशे में आ गया। और उसका सिर टेबल से टकराने लगा। जोर से था कि वह जिंदा मिलने वाला है। चालीस साल! कुतूहलवश कब्र | बजने लगे बर्तन और मुसोलिनी का सिर और जोर से टकराने खोदी गई। वह आदमी जिंदा था। और बड़ा आश्चर्य जो घटित लगा। और जोर से बजने लगे बर्तन! और फिर मुसोलिनी हुआ वह यह कि इस चालीस साल में उसकी उम्र में कोई भी | चिल्लाया कि रोको, क्योंकि मैं सिर को नहीं रोक पा रहा हूं! रोका, फेर-बदल नहीं हुआ था। उसके जो चित्र छोड़े गए थे अठारह सौ | तो सिर लहूलुहान हो गया था। अस्सी में फाइलों के साथ, उससे उसके चेहरे में चालीस साल का ___ मुसोलिनी ने अपनी आत्मकथा में लिखवाया है कि मैंने जो कोई भी फर्क नहीं था। | वक्तव्य दिया था, उसके लिए मैं क्षमा चाहता हूं। जरूर कृष्ण की ___ उन्नीस सौ बीस में कब्र के बाहर आकर वह आदमी नौ महीने और बांसुरी से जंगली जानवर आ गए होंगे। जब कि एक सभ्य आदमी जिंदा रहा। और नौ महीने में उतना फर्क पड़ गया, जितना चालीस का सिर सारी कोशिश करके भी नहीं रुक सकता है। और सिर्फ साल में नहीं पड़ा था। और उस आदमी से पूछा गया कि तुमने किया | | कांटे-चम्मच बर्तन पर बजाए जा रहे हैं, कोई बड़ा वाद्य नहीं! क्या? उसने कहा कि मैं कुछ ज्यादा नहीं जानता हूं। सिर्फ प्राणायाम | चित्त की सूक्ष्मतम तरंगें ध्वनि की तरंगें हैं। ध्वनि से हम जीते हैं। का एक छोटा-सा प्रयोग जानता हूं। श्वास पर काबू करने का एक अभी पश्चिम में इस पर बहुत काम शुरू हुआ है, साउंड छोटा-सा प्रयोग जानता हूं, और कुछ भी नहीं जानता। | इलेक्ट्रानिक्स पर, ध्वनिशास्त्र पर। क्योंकि पश्चिम में पागलपन तो एक हिस्सा तो शरीर है ऊर्जा का, जिसके योग ने सूत्र खोजे। | रोज बढ़ता जा रहा है। और अब साउंड इलेक्ट्रानिक्स के समझने दूसरा हिस्सा नया मन, ए न्यू माइंड पैदा करने की प्रक्रियाएं हैं, जो | | वाले लोग कहते हैं कि उसके बढ़ने का कारण ट्रैफिक की ध्वनियां योग ने खोजीं। पहले प्रयोग के लिए योगासन हैं, प्राणायाम हैं, | | हैं। सड़क पर जो ध्वनियां हो रही हैं, हार्न बज रहे हैं, कारें निकल मुद्राएं हैं। दूसरे प्रयोग के लिए ध्वनि, शब्द और मंत्रों का प्रयोग | रही हैं, भोंपू बज रहे हैं, ट्रक निकल रहे हैं, हवाई जहाज उड़ रहे है। तो मंत्रयोग की पूरी लंबी व्यवस्था है। | हैं, सुपरसोनिक उड़ रहे हैं, जंबो जेट उड़ रहे हैं, वे सब जो आवाजें हमें खयाल में भी नहीं है कि हमारा चित्त जो है, वह ध्वनियों से पैदा कर रहे हैं, उन ध्वनियों को यह मन नहीं सह पा रहा है;
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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