SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गीता दर्शन भाग-3 हुए जाने की बात हो गई। जरूरी है, किस कर्म के लिए कितना श्रम; किस कर्म के लिए कृष्ण ठीक कहते हैं, अपने-अपने आहार को, विहार को | कितनी शक्ति। संतुलित कर लेना जरूरी है; किसी नियम से नहीं, स्वयं की | और नहीं तो कई दफे ऐसा हो जाता है कि मैंने सुना है, एक जरूरत से। | आदमी एक सांझ-रात उतर रही है एक गांव के ऊपर-सड़क पर तेजी से कुछ खोज रहा है। और लोग भी खड़े हो गए और कहा कि हम भी सहायता दे दें, क्या खोज रहे हो? तब तक वह आदमी प्रश्नः भगवान श्री, इस श्लोक में अंत में, कर्मों में थक गया था, तो हाथ जोड़कर परमात्मा से प्रार्थना कर रहा है कि सम्यक चेष्टा, ऐसा कहा गया है। कृपया कर्मों में | मैं एक नारियल चढ़ा दूंगा; मेरी खोई चीज मिल जाए। तो लोगों ने सम्यक चेष्टा, इसका अर्थ भी स्पष्ट करें। कहा, भई, तेरी चीज क्या है, वह तो तू बता दे! | उसका एक पैसा खो गया है। पांच आने का नारियल। पराने जमाने की कहानी है। पांच आने का नारियल, एक पैसा खो गया है, क र्मों में सम्यक चेष्टा। वही बात है, कर्म के लिए। कर्मों उसको चढ़ाने के लिए सोच रहा है! उन लोगों ने कहा, तू बड़ा पागल पा में असम्यक चेष्टा का क्या अर्थ है, खयाल में आ है। एक पैसा खो गया, उसके लिए पांच आने का नारियल चढ़ाने जाए, तो सम्यक चेष्टा का खयाल आ जाएगा। की सोच रहा है! उस आदमी ने कहा, पहले पैसा तो मिल जाए, फिर कभी किसी स्कूल में परीक्षा चल रही हो, तब आप भीतर चले सोचेंगे कि चढ़ाना है कि नहीं। नहीं मिला तो अपना निर्णय पक्का जाएं। देखें बच्चों को। कलम पकड़कर वे लिख रहे हैं। स्वाभाविक है। मिल गया तो पुनर्विचार के लिए कौन रोक रहा है! है कि अंगुली पर जोर पड़े। लेकिन उनके पैर देखें, तो पैर भी अकड़े हमारे पूरे जीवन की व्यवस्था ऐसी ही है, जिसमें हम कभी भी हुए हैं। उनकी गर्दन देखें, तो गर्दन भी अकड़ी हुई है। उनकी आंखें | यह नहीं देख रहे हैं कि जो हम पाने चले हैं, उस पर हम कितना देखें, तो आंखें भी तनाव से भरी हैं। लिख रहे हैं हाथ से, लेकिन दांव लगा रहे हैं। वह इतना लगाने योग्य है? जो मिलेगा, उसके जैसे पूरा शरीर कलम पकड़े हुए है! लिए किया गया श्रम योग्य है? इज़ इट वर्थ? कभी कोई नहीं ___ असम्यक चेष्टा हो गई; जरूरत से ज्यादा चेष्टा हो गई। यह तो सोचता। कभी कोई नहीं सोचता कि जितना हम लगा रहे हैं, उतना सिर्फ अंगुली चलाने से काम हो जाता, इसके लिए इतने शरीर को उससे जो मिल भी जाएगा–अगर सफल भी हो जाएं, तो जो लगाना, बिलकुल व्यर्थ हो गया। यह तो ऐसा हुआ कि जहां सुई मिलेगा-वह इसके योग्य है? एक पैसे पर कहीं हम पांच आने की जरूरत थी, वहां तलवार लगा दी। और सुई जो काम कर . का नारियल तो चढ़ाने नहीं चल पड़े! सकती है, वह तलवार नहीं कर सकती, ध्यान रखना आप। इतना और फिर इस तरह की जो आदत बढ़ती चली जाए, तो इसकी तना हुआ बच्चा जो उत्तर देगा, वे गलत हो जाएंगे। क्योंकि चेष्टा दूसरी अति, इसका दूसरा रिएक्शन और प्रतिक्रिया भी होती है कि असम्यक है, अतिरिक्त श्रम ले रही है, व्यर्थ तनाव दे रही है। कभी-कभी जब कि सचमुच लगाने का वक्त आता है दांव, तब __ आप भी खयाल करना, जब आप लिखते हैं, तो सिर्फ अंगुली | हमारे पास लगाने को ताकत ही नहीं होती। पर भार हो, इससे ज्यादा भार असम्यक है। एक आदमी साइकिल | संयत श्रम, कर्मों में सम्यक चेष्टा। जीवन को एक विचार देने चला रहा है, तो पैर की अंगुलियां पैडिल को चलाने के लिए पर्याप्त की जरूरत है; एक अविचार में, विचारहीनता में जीने की जरूरत हैं। लेकिन छाती भी लगी है; आंखें भी लगी हैं; हाथ भी अकड़े नहीं है। हैं। सब अकड़ा हुआ है! असम्यक चेष्टा हो रही है। अननेसेसरी, एक आदमी धन कमाने चल पड़ा है। चले तो सोच ले कि धन व्यर्थ ही अपने को परेशान कर रहा है। लेकिन आदत की वजह से | मिलकर जो मिलेगा, उसके लिए इतना सब गंवा देने की जरूरत है? परेशान है। इतना सब, आत्मा भी बेच डालने की जरूरत है? सब कुछ गंवा देने हमारी सारी चेष्टाएं असम्यक हैं। या तो हम जरूरत से कम | की जरूरत है धन पाने के लिए? असम्यक चेष्टा हो रही है। करते हैं; और या हम जरूरत से ज्यादा कर देते हैं। ध्यान रखना कृष्ण मना नहीं करते कि धन मत कमाओ। कहते हैं, सम्यक [128
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy