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________________ एस धम्मो सनंतनो दूसरे ले जाएंगे। कोई इकट्ठा करता है, कोई ले जाता है ! जो ले जाता है, वह भी इकट्ठा कर रहा है, वह भी मरेगा, फिर कोई ले जाएगा। धन यहीं का यहीं पड़ा रहता है, हम आते और चले जाते हैं । न कोई धन लेकर आता, न कोई लेकर जाता - जिसको यह दिखायी पड़ जाता है, उसके जीवन में बड़े अर्थ, बड़ी भाव-भंगिमाओं में रूपांतरण हो जाते हैं, नए अर्थ आ जाते हैं। तब दान की संभावना है। जो है ही नहीं मेरा, उसको पकड़ना क्या ! जिसको मुझे छोड़कर जाना ही पड़ेगा, उसको फिर मौज से ही क्यों न दे देना! मजे से क्यों न दे देना ! जो दूसरे के हाथ लगने ही वाला है, उसे अपने ही हाथ से देने का मौका क्यों चूक जाना! और फिर पता नहीं किसके हाथ लगेगा ? अब सोचना : यह श्रेष्ठी मरा, यह चाहता तो बुद्ध को भी दे सकता था। लेकिन अब राजा के हाथ लगा। शायद इसी राजा से चुराया होगा टैक्स इत्यादि में। इसी राजा से बचाया होगा । उसी के हाथ लग गया ! यह दान भी हो सकता था। उस गांव गरीब भी थे बहुत । उनको दे गया होता। उस गांव में बीमार भी थे - बहुत, उनकी औषधि का इंतजाम कर गया होता। लेकिन कुछ भी न कर पाया। अपने लिए ही नहीं कर पाया, तो दूसरे के लिए क्या करेगा ? इसलिए तुमसे एक बात और इस संदर्भ में कह दूं। जब मैं कहता हूं, प्रेम करो, तो कभी भूलकर यह मत समझना कि मैं कहता हूं: अपने से प्रेम नहीं करो। जो अपने से करता है प्रेम, वही दूसरे से कर सकता है 1 यह श्रेष्ठी खुद ही ठीक से खाया-पीया नहीं, इसको गरीब को भूखा मरते देखकर दया नहीं आ सकती । कैसे आएगी ? यह खुद ही गरीब की तरह रह रहा है ! यह कहेगा : इसमें क्या खास बात है ! हम भी ऐसा ही रूखा-सूखा खाते हैं। तो धन का क्या करोगे ? धन हमारे पास है, फिर भी हम रूखा-सूखा खाते हैं। और तुम भी रूखा-सूखा खाते हो, धन तुम्हारे पास नहीं है। धन की जरूरत क्या है ? हमें भी देखो; इस तरह के फटे-पुराने कपड़े पहनते हैं । तुम पहनो, तो कोई बहुत बड़ी कुरबानी कर दी ! कि तुम बड़े शहीद हो गए ! हमारी बैलगाड़ी देखो! यह भी टूटी-फूटी; तुम्हारी भी टूटी-फूटी। हम तुम्हीं जैसे हैं। धन के होने, न होने से क्या जरूरत है ! जो आदमी स्वयं ठीक से नहीं खाया, वह किसी की भूख नहीं समझ सकेगा । आमतौर से तुम उलटा तर्क सोचते हो। तुम आमतौर से सोचते हो : जिस आदमी ने दुख देखा, वह दूसरे के दुख समझ सकेगा । गलत बात है। क्योंकि जिसने खुद दुख देखा, वह दुख के कारण जड़ हो जाता है, वह दूसरे का दुख नहीं देख पाता । जिसने सुख देखा, वह दूसरे का दुख देख पाता है । सुख के कारण तुलना पैदा होती है। गरीब आदमी दूसरे गरीब आदमी के प्रति कोई दया नहीं कर पाता। 224
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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