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________________ उठने में ही मनुष्यता की शुरुआत है तो हिंदू परंपरा रही है कि संन्यासी को विवाह में न बुलाया जाए। और विवाह के बाद, जो लोग विवाह के बंधन में बंधे हैं, वे संन्यासी से आशीर्वाद भी लेने न जाएं। क्योंकि संन्यासी का आशीर्वाद अगर सच में आशीर्वाद है तो विवाह के विपरीत होगा। अगर वह कुछ कहेगा, तो विवाह के विपरीत कहेगा। उसकी आशीष जगाने की होगी, सुलाने की नहीं हो सकती। जो अभी सोने को तत्पर हुआ है, वह जागे हुए लोगों से बचे, यह बात तर्कयुक्त मालूम होती है। _ लेकिन बुद्ध ने ये सारी प्रक्रियाएं तोड़ दीं। बुद्ध ने यह सारी परंपरा तोड़ दी। बुद्ध ने कहा, विवाह के क्षण ही संन्यासी को निमंत्रित करना, बुलाना। क्योंकि यह मौका है जब कच्चा मन एक ढांचे में ढल रहा है। जब कच्चा मन एक यात्रा पर निकल रहा है। इस घड़ी में जो भी संस्कार पड़ जाते हैं, गहरे होते हैं। मनोवैज्ञानिक भी इस बात से सहमत होते हैं कि मनुष्य के जीवन में कुछ घड़ियां होती हैं जो सर्वाधिक संवेदनशील होती हैं। उन घड़ियों में जो संस्कार पड़ जाते हैं, वे गहरे अचेतन तक चले जाते हैं। .. जैसे बच्चा पैदा हुआ, तब पहली घड़ी। बच्चा पैदा होकर जो देखता है, जो अनुभव करता है, पहली बार आंख खोलता है, पहली बार मां के गर्भ से निकलकर श्वास लेता है, उन दस-पंद्रह सेकेंड में जो घटता है, वह सदा के लिए उसके मन का आधार बन जाता है। उससे महत्वपूर्ण घटना फिर दुबारा कभी न घटेगी। इसलिए वे दस-पंद्रह सेकेंड अपूर्व मूल्य के हैं। और मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि उनका जितना सदुपयोग हो सके उतना अच्छा है। अभी तो जो हम उपयोग करते हैं वह सदुपयोग नहीं है, दुरुपयोग है। अभी तो बच्चा पैदा होता है, डाक्टर उसे पैरों से पकड़कर उलटा टांग देता है। यह यात्रा शुरू हो गयी उपद्रव की। यह बच्चे को सदमा लगता है। अभी-अभी सब सुखपूर्ण था, अब अचानक एकदम दुखपूर्ण हो गया। ऐसे तो नौ महीने गर्भ में रहने के बाद जब आंख खोलता है बच्चा, तो रोशनी तक कष्टकारी है। इसलिए मनोवैज्ञानिक कहते हैं, बहुत धीमी रोशनी होनी चाहिए। लेकिन जहां अस्पतालों में बच्चों को जन्म दिया जा रहा है, वहां बड़ी तेज रोशनी होती है। बच्चे की आंखें अभी अति कोमल हैं, गुलाब की पंखुड़ियों जैसी हैं, अभी इतनी तेज रोशनी उनके लिए सदा के लिए चोट से भर देगी, तिलमिला देगी, यह पहला अनुभव संसार का बुरा अनुभव हो जाएगा। पश्चिम में, जहां मनोविज्ञान के नए आधार रखे जा रहे हैं, फर्क आना शुरू हुआ है। अब बच्चों को ऐसे कमरों में जन्म दिया जा रहा है जहां अत्यंत धीमी रोशनी होती है। और अत्यंत सुकोमल, रंगीन, प्रीतिकर, नीली, धीमी नीली रोशनी होती है। कि बच्चा आंख खोले तो उसे कोई चोट न लगे। फिर बच्चे को एकदम ऐसे बिस्तर पर लिटा देना जो सख्त है, खतरनाक है, अभी बच्चे की त्वचा बहुत कोमल है। तो पश्चिम में अब उसे ठीक उसके शरीर के योग्य गरम पानी में लिटाते हैं। क्योंकि मां
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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