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________________ एस धम्मो सनंतनो तुम प्रेम में पड़ते हो, तो तुम्हें कवि की आंख उपलब्ध होती है। तुम्हें रहस्यवादी संत की आंख उपलब्ध होती है। ___ तो अगर तुम मेरे प्रेम में हो, तो ही मेरे पास भी हो, ध्यान रखना। अन्यथा पास आकर भी कोई पास आ पाता है? शारीरिक निकटता किसी को पास थोड़े ही लाती है। एक आत्मिक निकटता। फिर तुम हजारों मील दूर भी रहो, तो भी पास हो। विचार बीच में न हों, तो तुम पास हो। विचार बीच में हों, तो तुम पास होकर भी दूर हो। और विचार बीच में न हों, तो प्रेम बहता है। विचार पत्थर की तरह रोके हुए है प्रेम को। जहां प्रेम बहता है, वहां तुम्हें कुछ चीजें दिखायी पड़ेंगी जो प्रेम से खाली आंखों को दिखायी नहीं पड़ेंगी। और प्रेम से खाली आंखें तुम्हें अंधा कहेंगी। तुम उससे बेचैन मत होना। उनके लिए यह वक्तव्य स्वाभाविक है। बुद्धिमान तुम्हें पागल . कहेंगे। सदा से उन्होंने कहा है। ___ जब बुद्ध के पास लोग आकर हजारों की संख्या में संन्यस्त होने लगे, तो लोगों ने कहा, पागल हो गए, इस आदमी ने लोगों को पागल किया। यह क्या है ? सम्मोहित हो गए। जब महावीर के पास आकर लोग संन्यस्त हुए, और उन्होंने जीवन का नया ढंग लिया, नयी चाल सीखी, तो लोगों ने फिर कहा कि पागल हुए। यह संसार सदा से ही जो भीड़ का रास्ता है उससे अन्यथा जाने वालों को पागल कहता रहा है। अगर तुममें हिम्मत हो मेरे साथ चलने की, तो तुम्हें यह भी हिम्मत जुटानी पड़ेगी कि लोग जब पागल कहें, तो हंस लेना। और जब लोग पागल कहें, तो क्रोध मत करना। स्वाभाविक है। वे तुम्हें पागल नहीं कह रहे हैं, वे यह कह रहे हैं कि अगर तुम ठीक हो तो फिर हम पागल हैं क्या? वे सिर्फ आत्मरक्षा कर रहे हैं! तुम उन पर नाराज मत होना। अगर तुम नाराज हुए, तो तुम उनके विचार को मजबूत कर दोगे कि निश्चित ही तुम पागल हो गए हो। तुम नाराज मत होना। तुम हंसना, तुम उन्हें बिबूचन में डाल देना। तुम मुस्कुराना। तुम कहना कि ठीक कहते हो, पागल हो गए हैं, लेकिन पहले से भले हो गए हैं। और पहले से ज्यादा मजे में हो गए हैं। मगर पागल हो गए हैं, यह सच है। तुम्हारे पागलपन को उनके प्रति करुणा बनने देना। क्योंकि वे परेशान हैं अपने पागलपन से। वे भी चाहते हैं कि छूट निकलें, कहीं कोई द्वार-दरवाजा मिले। वे कारागृह में बंद हैं। अगर तुम्हें आनंदित देखा, शांत देखा, तो तुम उन्हें भी खींच लाओगे। अगर तुम क्रोधित हुए, अगर तुम अपनी आत्मरक्षा करने लगे, तुमने कहा कि मैं पागल नहीं, अगर तुम विवाद में पड़े, तो तुम उनके लिए द्वार बंद कर दोगे। यही तो वे चाहते थे कि तुम विवाद में उतर आओ। ___ तुम मुस्कुराना। तुम उन्हें आशीर्वाद दे देना। उनके लिए परमात्मा से प्रार्थना करना। एक फूल उनको भेंट कर आना, और लौट आना। तुम कोई विवाद मत करना। तो तुम उनके लिए भी रास्ता खुला रखोगे। आज नहीं कल वे भी आ सकते 196
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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