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________________ महोत्सव से परमात्मा, महोत्सव में परमात्मा अनूठा ही ढंग है; अगर तुमने प्रेम से मुझे सुना, तो तुम मेरे सारे विरोधों में एक ही संगीत को प्रवाहित होते हुए देखोगे। नदियां चाहे पूरब की तरफ जा रही हों, चाहे पश्चिम की तरफ, सब सागर की तरफ जा रही हैं। कुछ नजर आता नहीं उसके तसव्वुर के सिवा हसरते-दीदार ने आंखों को अंधा कर दिया प्रेम के लिए जो आंख है, बुद्धि के लिए वही अंधापन मालूम होता है। इसलिए बुद्धिमान सदा प्रेम को अंधा कहते रहे हैं। तुम प्रेमी से पूछो। प्रेमी बुद्धिमानों को अंधा मानता है। क्योंकि प्रेमी कुछ ऐसा देख लेता है, जो बुद्धि देख ही नहीं पाती। __ कल एक युवा संन्यासी ने मुझसे पूछा कि जब से ध्यान कर रहा हूं, तब से कुछ ऐसी चीजें दिखायी पड़ती हैं, अनुभव आती हैं, कि मुझे डर लगता है कि कहीं मैंने कल्पना तो नहीं कर ली। फूल ज्यादा रंगीन दिखायी पड़ते हैं, कहीं मैं कल्पना तो नहीं कर रहा हूं? वृक्ष ज्यादा हरे मालूम पड़ते हैं, ताजे और नहाए मालूम पड़ते हैं, कहीं मैं कल्पना तो नहीं कर रहा हूं? क्योंकि वृक्ष तो ये वही हैं, न इन्होंने कोई स्नान किया है, न कोई ताजगी आ गयी है। उस युवक की चिंता स्वाभाविक है। भीतर मन साफ हो रहा है, तो बाहर भी चीजें साफ होने लगी। मैंने कहा, घबड़ाना मत। अगर डर गए और ऐसा सोच लिया और मान ली बुद्धि की बात कि यह तो कल्पना का जाल है, तुमने सपने देखने शुरू कर दिए, तो जो द्वार खलता था, जो पर्दा हटता था, रुक जाएगा। यह तो बुद्धि ने सदा ही कहा है। एक कवि को फूल में उतना दिखायी पड़ता है जितना किसी को दिखायी नहीं पड़ता। एक छोटे बच्चे को सागर के तट पर कंकड़-पत्थर में, सीपी-शंख में इतना दिखायी पड़ता है जितना किसी को दिखायी नहीं पड़ता। कंकड़-पत्थर भर लेता है खीसे में, जो भी रंगीन मिला। मां-बाप कहे चले जाते हैं कि फेंको, बोझ हुआ जा रहा है, यह घर ले जाकर क्या करोगे? बच्चा छोड़ता भी है, तो भी आंख में आंसू आ जाते हैं। • ये जो बड़े-बूढ़े हैं, इनको अगर हीरे-जवाहरात होते तो ये भी भर लेते। अभी इनको यह पता ही नहीं रहा, ये भूल ही गए भाषा कि इस बच्चे को अभी कंकड़-पत्थरों में भी हीरे दिखायी पड़ते हैं। अभी हर रंगीन पत्थर कोहिनूर है। अभी इसकी आंखें धुंधली नहीं पड़ी, अभी साफ हैं। अभी इसे सीपी-शंख में खजाने दिखायी पड़ते हैं। अभी इसकी बुद्धि मंद नहीं हुई। अभी प्रतिभा ताजी-ताजी है, अभी-अभी परमात्मा के घर से आया है। अभी नजर साफ है। अभी धूल नहीं जमी। अभी अनुभव का कचरा इकट्ठा नहीं हुआ। लेकिन जल्दी ही बड़े-बूढ़े इसे समझा देंगे कि ये कंकड़-पत्थर हैं, छोड़ो। और दूसरे कंकड़-पत्थरों की दौड़ पर लगा देंगे, जिनमें उनको मूल्य दिखायी पड़ता है। जब तुम फिर से प्रेम में पड़ते हो, तो फिर तुम्हें बच्चे की आंख मिलती है। जब 195
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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