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________________ चारशील मनुष्य निरंतर ही पूछता है : जीवन का उद्देश्य क्या? जीएं क्यों? किसलिए? और ऐसा आज नहीं, सदा से ही विचारशील मनुष्य ने पूछा है। समस्त धर्मों का जन्म और समस्त दर्शनों का जन्म इस प्रश्न के आस-पास ही निर्मित हुआ है : उद्देश्य क्या है? प्रयोजन क्या है? लक्ष्य क्या है? अंत क्या है? और जो ऐसा नहीं पूछते हैं, विचारशील लोग सोचते रहे हैं कि वे विचारहीन हैं, अज्ञानी हैं। जो ऐसे ही जीए चले जाते हैं, बिना लक्ष्य को पूछे, उन्हें विचारशील लोग सदा से अज्ञानी समझते रहे हैं। लाओत्से की बात बहुत हैरान करेगी। क्योंकि लाओत्से कहता है कि जिसने उद्देश्य से जीना चाहा, उद्देश्य तो कभी मिलेगा ही नहीं, जीवन जरूर खो .जाएगा। जिसने किसी लक्ष्य के लिए जीने की कोशिश की, वह लक्ष्य को तो पा ही नहीं सकेगा, जीवन को जरूर नष्ट कर लेगा। जी तो वही सकता है, जो निष्प्रयोजन जीने की कला जान ले। जीने की सघनता में तो वही उतर सकता है, जिसका कोई उद्देश्य नहीं है इस क्षण के बाहर। तो इसे थोड़ा एक-एक कदम समझना पड़े, क्योंकि शायद यह कठिनतम बात है हमारे मन की पकड़ में आने के लिए। और कठिन इसीलिए है कि मन तो बिना उद्देश्य के एक क्षण भी नहीं जी सकता। हम तो जी सकते हैं, लेकिन मन बिना उद्देश्य के नहीं जी सकता। अगर उद्देश्य नहीं है कोई, तो मन बिखर जाएगा। इसलिए मन को बहुत कठिनाई होगी यह बात जानने के लिए, समझने के लिए। असल में, मन जीवन से विपरीत घटना है। तो जितना ज्यादा मन होता है हमारे पास, उतना ही कम जीवन हो जाता है। __इसे बहुत पहलुओं से समझना पड़े। एक, कि उद्देश्य की सारी की सारी चर्चा और विचारणा बड़ी अर्थहीन है। अर्थहीन उस बात को कहते हैं कि हम चाहे कोई भी उत्तर खोज निकालें, जिस प्रश्न के लिए हमने उत्तर खोजा था, वह अगर पुनः वैसा ही खड़ा रहे, तो सारी चेष्टा व्यर्थ हो जाती है। जैसे लोग पूछते हैं कि जगत को किसने बनाया? तो यह अर्थहीन प्रश्न है। यह अर्थहीन इसलिए है कि यदि हम उत्तर दे पाएं कि जगत को अ ने बनाया, तो प्रश्न फिर खड़ा हो जाता है कि अ को किसने बनाया? और हम कितने ही उत्तर खोजते चले जाएं-ब, स, और अंतहीन–लेकिन हर उत्तर के बाद प्रश्न अपनी जगह ही खड़ा पाया जाएगा। क्योंकि प्रश्न में हमने एक बात मान ली थी कि कोई चीज बिना बनाए नहीं हो सकती। वहीं भ्रांति हो गई। अब वही भ्रांति हमारा पीछा करेगी। अगर कोई कहेगा ईश्वर ने बनाया, तो प्रश्न उठेगा, ईश्वर को किसने बनाया? और आप अब यह न कह सकेंगे कि ईश्वर बिना बनाया हुआ है। क्योंकि अगर आप यही कहते हैं, तो पहला प्रश्न ही गलत था। फिर संसार ही बिना बनाया हो सकता है। तो यह प्रश्न जो है, इनफिनिट रिग्रेस में ले जाता है, अंतहीन व्यर्थ उत्तरों में ले जाता है। तो जिस प्रश्न का उत्तर प्रश्न को समाप्त न करता हो और प्रश्न उत्तर के बाद भी ठीक वैसा ही खड़ा रहता हो जैसा पहले था, तो वह प्रश्न व्यर्थ है।
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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