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________________ विश्रांति से समता व मध्य मार्ग से मुक्ति हम सब एक-दूसरे पर निर्भर होकर जी रहे हैं। और यह निर्भरता ऐसी नासमझी से भरी है कि जिन पर हम निर्भर हैं, वे हम पर निर्भर हैं। हम उनके बल से जी रहे हैं; वे हमारे बल से जी रहे हैं। हम सब निर्बल हैं। लेकिन धोखा इससे हो जाता है। जिंदगी का अवसर बीत जाता है। . संतत्व सत्य को देखने की चेष्टा है। जैसा भी है सत्य, उसे वैसा ही देखने की चेष्टा है। और जो व्यक्ति भी सत्य को देखने को राजी हो जाता है, वह शीघ्र ही सत्य के आनंद का भी अनुभव शुरू कर देता है। जिन्होंने भी इस बात को पहचान लिया कि भरे होने की, भरने की, भरे जाने की सारी दौड़ नर्क है, उन्होंने अपने को भरना छोड़ दिया। और उन्होंने अपने को खाली होना ही जाना, कि मैं खाली ही हूं। यह बहुत मजे की बात है कि विगत दो सौ वर्षों में पश्चिम ने सर्वाधिक भराव पैदा किया है आदमी के लिए। चीजों से घर भर गए हैं। यांत्रिक नई ईजादों से जमीन भर गई है। हर आदमी के पास इतना है जितना कि कभी भी किसी आदमी के पास नहीं था। बड़े से बड़े सम्राट के पास जो नहीं था, वह आज एक साधारण जन के पास पश्चिम में है। सब तरफ भराव है। और पश्चिम में दो सौ साल से जिस बात की प्रगाढ़तम अनुभूति हो रही है, वह है एम्पटीनेस। अगर पश्चिम का इन दो सौ वर्षों का सबसे महत्वपूर्ण शब्द हम खोजें, तो वह है एम्पटीनेस, खालीपन, रिक्तता। काम, सार्च, हाइडेगर, पोर्तेगा वाइगासिथ, वे सभी रिक्तता की बात करते हैं। वे कहते हैं, जिंदगी बिलकुल रिक्त है, खाली है। और बड़ी बेचैनी है, क्योंकि जिंदगी भरती ही नहीं। कभी किसी गरीब समाज को इतना अनुभव नहीं हुआ था रिक्तता का। क्योंकि पेट खाली था, तो आत्मा के खाली होने का पता चलना ही नहीं हो पाता था। पेट खाली हो, तो और बड़े खालीपन दिखाई ही नहीं पड़ते। पेट को भरने में ही सारा समय व्यतीत हो जाता है। आज पश्चिम का पेट भर गया है, शरीर भर गया है; चीजें चारों तरफ इकट्ठी हो गई हैं। और आदमी को भीतर अनुभव हो रहा है, सब खाली है। कुछ भी नहीं है भीतर। यह खालीपन, लाओत्से कहता है, इसके साथ हम दो काम कर सकते हैं। या तो इसे भरने में लग जाएं, जो कि कभी भरेगा नहीं। एक और उपाय है : या हम इसे भुलाने में लग जाएं। आदमी दो ही उपाय करता है : या तो भरने की कोशिश करता है; और जब नहीं भर पाता, तो भुलाने की कोशिश करता है। पहले सिकंदर भरने की कोशिश करेगा। और जब पाएगा कि असफल हुआ, तो शराब में भुलाएगा अपने को, नग्न स्त्रियों के नृत्य में भुलाएगा अपने को, ताकि अब खालीपन पता न चले। भरो या भुलाओ। लेकिन लाओत्से कहता है, न भरने से भरता है और न भुलाने से भूलता है। जिंदगी के बड़े अदभुत नियम हैं। जिस चीज को जितना भुलाओ, उतनी ही याद आती है। चाह कर इस जगत में कुछ भी भुलाया नहीं जा सकता। भुलाएं! और जितना भुलाएंगे, उतना ही पाएंगे, याद आता है। असल में, भुलाने की कोशिश में भी याद तो करना ही पड़ता है। जब एक आदमी अपने भीतर के खालीपन को डुबाने को, भुलाने को शराब पी रहा है, तब भी वह गहन रूप से याद कर रहा है। होश में आएगा, तब भी गहन रूप से याद करेगा कि शराब व्यर्थ हो गई, शरीर को खराब कर गई; वह जो घाव था, वह अपनी जगह फिर खड़ा है-और भी गहरा होकर, और भी रिक्त होकर दिखाई पड़ रहा है। न तो कोई भर सकता है और न कोई भुला सकता है। लाओत्से कहता है, संत वे हैं जो दोनों ही काम नहीं करते। वे खाली होने को राजी हो जाते हैं। वे कहते हैं, हम खाली हैं; बात समाप्त हो गई। न हम भरेंगे, न हम भुलाएंगे। और बड़ा आश्चर्य और बड़ा चमत्कार जो इस जगत में घटता है, वह यह है कि जो अपने खालीपन से राजी हो जाता है, उसका खालीपन मिट जाता है। यह थोड़ा कठिन लगेगा। असल में, खालीपन अनुभव इसलिए होता है कि हम भरने के लिए आतुर हैं। हमारी आतुरता के कारण खालीपन है। जितने हम आतुर हैं, उतना हमें खालीपन मालूम होता है। जब हम राजी ही हो 227
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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