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________________ साधना-योग के संदर्भ में ताओ 133 दोषी कौन है और निर्दोष कौन है ? किसको निर्दोष कहते हैं आप ? क्या मापदंड है आपके पास तौलने का कि यह आदमी जो मर गया, यह निर्दोष था ? और अगर कोई रास्ता भी हो जानने का कि कौन दोषी है और निर्दोष कौन है, यह आपको कैसे पता चलता है कि मरना एक बुराई है? यह कैसे आपको पता चलता है ? देख कर तो ऐसा लगता है कि सब बुराइयां जीवन में घटित होती हैं। मरने में तो कोई बुराई घटित होती देखी नहीं जाती। किसी मरे आदमी को कोई बुराई करते देखा है ? अगर बुराई है, तो जिंदगी बुराई होगी। मौत ने तो अब तक कोई बुरा नहीं किया। मौत ने कोई बुरा किया है आज तक ? लेकिन जिंदगी से हमारा मोह भारी है। इसलिए हम कहते हैं मौत बड़ी बुरी चीज है। यह मौत की बुराई हम नहीं बताते, हमारी जिंदगी का मोह बताते हैं । यह खबर इस बात की है कि हम जीना चाहते हैं, बस । जीना हमारा ऐसा पागल भाव है कि मौत भर नहीं होनी चाहिए। तो हम सड़ते रहें, गलते रहें, तो भी हम जीना चाहते हैं, मरना नहीं चाहते। सड़ा हुआ जीवन भी हम पसंद करेंगे स्वस्थ मौत की बजाय । क्यों ? क्योंकि बस मौत बुराई है, मौत बुरी है। उसमें हम...1 क्या, ऐसा क्या बुरा है? मौत ने आपको कभी सताया है, याद है? मौत ने आपको कौन सी तकलीफ दी है आज तक, पता है ? जिंदगी में सब बीमारियां घटती हैं। मौत के बाद कोई बीमारी भी नहीं घटती । जिंदगी में सब उपद्रव होते हैं— मुकदमे चलते हैं, अदालतें होती हैं, चोरी होती हैं, दंगे-फसाद होते हैं, हिंदू-मुस्लिम दंगे होते हैं - यह सब होता है। मौत तो परम शांति है। फिर मौत से इतनी घबड़ाहट क्या है आपको ? जो मर गए, वे नुकसान में पड़े, इसका आपको पक्का पता है? कभी मुर्दा लोगों ने कहा है कि हम नुकसान में पड़े, तुम बड़े फायदे में हो? कौन जाने, मुर्दे सोचते हों कि ये बेचारे निर्दोष लोग बच गए और नदी में नहीं बह गए ! कई निर्दोष बच गए। इन्होंने क्या बिगाड़ा था कि परमात्मा ने इनको न मारा ? यह सब दृष्टिकोण की बात है, दृष्टिकोण की बात है । और अपनी दृष्टि को जो भी अस्तित्व पर थोपेगा, वह नासमझ है। अस्तित्व आपकी दृष्टियों की फिक्र नहीं करता। आप जिस सागर में एक छोटी सी लहर हैं, आप उस पूरे सागर के संबंध में जब भी निर्णय थोपने जाते हैं, तभी नासमझी करते हैं। इसलिए ज्ञानी वह है, जो अस्तित्व के बाबत निर्णय नहीं करता। जीता है, बिना किसी निर्णय के, बिना किसी वक्तव्य के, बिना किसी भाव के । मौत है, तो मौत को देख लेता है; जीवन है, तो जीवन को देख लेता है। जानता है कि जीवन भी एक रहस्य है और मौत भी एक रहस्य है, और निर्णायक कोई भी नहीं है। इसीलिए तो जीवन एक मिस्ट्री है कि निर्णायक कोई भी नहीं है। क्या है बुरा? क्या है भला? इतना आसान अगर होता, जितना हम सोचते हैं और जैसा हम दिन-रात कहे चले जाते हैं। हम सिर्फ अपने अज्ञान को जाहिर करते हैं। हम छोटी सी बात में कह देते हैं कि यह बुराई है, यह भलाई है। और बुराई और भलाई क्या है, अब तक निर्णीत नहीं है। अब तक निर्णीत नहीं है और कभी निर्णीत नहीं होगी। इसका यह मतलब नहीं है कि मैं आपसे कह रहा हूं कि जो मौज में आए, करें; क्योंकि कुछ निर्णीत नहीं है। तो जाएं, दो-चार आदमियों की हत्या कर दें; क्योंकि पता नहीं भला कर रहे हों। यह मैं आपसे नहीं कह रहा हूं। अगर आपको यह भाव समझ में आ जाए, यह गहन बोध आपके भीतर उतर आए कि निर्णायक हम नहीं हैं, तो आप हत्या तो कर ही नहीं सकेंगे। क्योंकि हत्या तो निर्णय से होती है। हम मान लेते हैं कि यह आदमी बुरा है, मार डालो। इसलिए जिसको हम जितना बुरा मान लेते हैं, उतना ही मारने में आसानी हो जाती है। इसलिए अदालतें जितने मजे से मारती हैं, उतना कोई नहीं मार सकता। क्योंकि अदालतें बिलकुल निर्णीत हैं कि यह आदमी बुरा है। उन्होंने तीन साल मुकदमा चलाया, सब एवीडेंस इकट्ठे कर लिए, सब तय हो गया मामला। इसलिए मजिस्ट्रेट जितनी आसानी से हत्या करता है, उतनी इस दुनिया में कोई हत्यारा भी नहीं कर सकता। क्योंकि मजिस्ट्रेट के पक्ष में निर्णय पूरा है; साबित हो गया कि यह आदमी बुरा है।
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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