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________________ तो सवाल कुल इतना है कि कैसे हमारे भीतर जो इकट्ठा हो जाता है, वह पिघल जाए; और हम तरल हो जाएं, लिक्विड हो जाएं, फिर बहने में समर्थ हो जाएं। ताओ उपनिषद भाग २ एक दो-तीन छोटे-छोटे सवाल हैं। एक मित्र ने पूछा है कि लाओत्से के हिसाब से भलाई और बुनाई रात-दिन की तरह जगत में हैं, और परमात्मा ने आदमी को स्वतंत्र बनाया, इसलिए वह बुरा भी कर सकता है, भला भी कर सकता है। लेकिन उन्होंने पूछा है कि प्रकृति क्यों बुराई कर रही हैं? नदी में बाढ़ आ जाती हैं, निर्दोष लोग डूब कर मर जाते हैं। या आग लग जाती हैं, या कुछ हो जाता है। हमारी कठिनाई यह है कि बुराई को हम स्वीकार नहीं कर पाते कि वह भलाई के साथ अनिवार्य है। और उसी नदी के किनारे जब बाढ़ नहीं आती और खेतों में गेहूं फलते हैं, तब? और जब उसी आग पर रोटी सिंकती है, तब? और जब उसी आग से मकान जल जाता है, तब हम कहते हैं, यह बुराई प्रकृति क्यों कर रही है? लेकिन आपको पता है कि अगर प्रकृति ऐसा इंतजाम कर दे कि आग जला न सके, तो आग से जो भलाई होती है, वह भी नहीं हो सकेगी। और प्रकृति ऐसा इंतजाम कर दे कि नदी में पानी न आए, तो फिर ठीक है, फिर भलाई भी नहीं होगी, बुराई भी नहीं होगी। हमारी कठिनाई यह है कि हम अपने को जगत के केंद्र में रख कर सोचते हैं कि हमारे हित में जो हो रहा है, वह भलाई; और हमारे अहित में जो हो रहा है, वह बुराई। लेकिन हम यह नहीं सोचते कि जिस कारण से हित हो रहा है, उसी कारण से अहित होता है। और कारण को अगर हटाना है, तो दोनों चीजें बंद हो जाएंगी। नदी में पानी न बहे, तो कभी बाढ़ न आएगी; और आग ठंडी हो जाए, तो कभी कोई मकान नहीं जलेगा। बिलकुल ठीक है। लेकिन तब आपको पता है, पूरी जिंदगी ठंडी हो जाएगी आग के ठंडे होने के साथ ही। दोनों चीजें एक साथ घटित होती हैं, एक बात। इसलिए जब भी हम किसी चीज को स्वीकार करते हैं, तब हमें उसके बुराई के हिस्से को भी स्वीकार कर ही लेना चाहिए। जो नहीं करता, वह अप्रौढ़ है, बचकाना है। . जब मैं किसी को प्रेम करता हूं, तो मुझे जान ही लेना चाहिए कि प्रेम टूट भी सकता है। टूटेगा ही। जो जुड़ता है, वह टूटता है। जो बनता है, वह मिटता है। जब मैं एक बेटे को जन्म देता हूं और बैंड-बाजे बजाता हूं, तो मुझे घर में अरथी भी तैयार कर लेनी चाहिए। क्योंकि कल अरथी भी उठेगी ही; जो जन्मता है, वह मरता है। लेकिन जिसने बैंड-बाजे खूब बजाए और अरथी को बिलकुल भूल गया, वह छाती पीट कर कल रोएगा कि बड़ी बुराई हो रही है जगत में-आदमी मरता क्यों है? वह कभी नहीं पूछता कि आदमी जन्मता क्यों है? जन्मने को हम बिलकुल स्वीकार किए बैठे हैं और मरने की बड़ी तकलीफ उठा रहे हैं। अब यह भी इनको बुराई क्यों मालूम पड़ती है मित्र को कि नदी आ जाती है, निर्दोष लोग मर जाते हैं। इनका मतलब यह है कि दोषी मरें, तो चलेगा। दोषी कौन है? दोषी कौन है, जिसने आपकी पार्टी को वोट नहीं दिया? कि जो आपकी मस्जिद में नहीं आता? कि जो आपके मंदिर का भक्त नहीं है? कि जो गीता नहीं पढ़ता? कौन आदमी दोषी है? वह आदमी जो शराब पीता है? आपने ठेका लिया है कि कौन आदमी क्या पीए? आप निर्णायक हैं? कौन आदमी दोषी है? और कौन तय करेगा? दोषी मर जाएं, तो चलेगा। मगर आप उसी गांव में पूछे कि दोषी कौन है, तो करीब-करीब पूरा गांव दोषी होगा–अलग-अलग लोगों से पूछना पड़ेगा-पूरा गांव दोषी सिद्ध होगा। अगर एक ही आदमी के हाथ में निर्णय न दें और पूरे गांव से पता लगा लें, तो एक भी आदमी बचने योग्य नहीं मिलेगा। पूरा गांव तय हो जाएगा कि कोई किसी के लिए तय होगा, कोई किसी के लिए तय होगा लेकिन पूरा गांव मरेगा। 132|
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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