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________________ ताओ उपनिषद भाग २ दुश्मन है। आप कुछ भी करें, जो भी आप करेंगे, उससे नींद आने में देर लगेगी। तो क्या हम उससे कह दें कि कोई उपाय ही नहीं है तुम्हारे लिए? क्या हम उससे कह दें कि कोई उपाय ही नहीं है तुम्हारे लिए? जिसको नींद नहीं आती, क्या उससे हम कह दें कि कोई उपाय नहीं है, मरो! तुम ऐसे ही रहोगे, कोई उपाय नहीं है। क्योंकि नींद तो लाई नहीं जा सकती। आ जाए तो ठीक, न आ जाए तो ठीक। यह तो बहुत क्रूर होगा और बुद्धिमानीपूर्ण भी न होगा। क्योंकि जिसे नींद नहीं आती, उसे भी नींद लाने में सहायता पहुंचाई जा सकती है। तब उसे ऐसी क्रियाएं बतानी होंगी, जो क्रियाएं इतनी उबाने वाली हैं कि अपने आप छुट जाती हैं। जैसे उससे कहा जाए कि तुम कुछ न करो, एक से लेकर सौ तक गिनती गिनो, फिर सौ से वापस लौटो एक तक, फिर एक से सौ तक जाओ-ऐसा करो। ___ अब यह उबाने वाली क्रिया है, बोर्डम की क्रिया है। अगर एक आदमी एक, दो से लेकर सौ तक जाए और फिर सौ, निन्यानबे, अट्ठानबे फिर वापस लौटे, यह करता रहे, थोड़ी देर में मन ऐसा ऊब जाएगा, इतना ऊब जाएगा कि इसे छोड़ने की भी याद न रहेगी। यह छूट जाएगा। इसके छूटते ही नींद घटित हो जाएगी। वह नींद इसके कारण नहीं आई; फिर भी इससे सहायता मिली। इससे सहायता मिली। लाओत्से ने जो भी साधना-प्रक्रियाएं बताई हैं, वे सब साधना-प्रक्रियाएं निगेटिव हैं, इसी तरह की नकारात्मक हैं। वह जो भी कह रहा है, वह कह रहा है, अपने केंद्र को खोजो। अब केंद्र है; खोजने की जरूरत नहीं है वस्तुतः। और हम न भी खोज पाएं, तो भी केंद्र है। हमें न भी पता हो, तो भी है। और हमें पता नहीं है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, केंद्र केंद्र ही है। हम चाहे बुद्धि में जीएं और चाहे हृदय में जीएं, जीवन नाभि में केंद्रित है। ये हमारी भ्रांतियां हैं। लाओत्से कहता है, जरा खोजो, शायद खोजने से भ्रांतियों से चित्त हट जाए, शायद खोजते-खोजते अचानक तुम करीब आ जाओ और उदघाटन हो जाए। चीनी कथा है कि एक सम्राट पागल हो गया। और अपने महल को छोड़ कर, महल के नीचे जो तलघरा था, कबाड़खाना था—फिजूल की चीजें, महल के काम की नहीं होती थीं, डाल दी जाती थीं-उसमें रहने लगा। पहले तो वजीरों ने समझा कि वह कोई साधना करता होगा। पहले-पहले पागल साधक मालूम पड़ते हैं और आखिर-आखिर में साधक पागल मालूम पड़ने लगते हैं। कोई साधना करता होगा, क्योंकि गुफा में नीचे चला जाता है। लेकिन धीरे-धीरे उसने ऊपर आना बंद कर दिया। तब थोड़ा शक होना शुरू हुआ। फिर वह राज्य वगैरह की बात ही भूल गया। फिर वजीर कुछ पूछने भी जाते, तो वह सुनता रहता, वह कुछ जवाब भी न देता। फिर शक पैदा हुआ। फिर वह वहीं रहने लगा, महल में आना भी उसने बंद कर दिया। तब उसे लोग समझाने लगे कि तुम ऊपर चलो। तो वह कहता था, लेकिन महल तो यही है। ऊपर जाकर क्या करेंगे! क्या यह महल नहीं है? तो वजीर इसका भी उत्तर नहीं दे पाते थे सीधा कि नहीं है; क्योंकि था तो वह भी महल ही, वह था तो महल का ही हिस्सा। तो जब वह सम्राट पूछता था कि मुझे कहो स्पष्ट कि क्या यह महल नहीं है? और अगर गलत बोले, तो गर्दन कटवा दूंगा। तो वे वजीर बड़ी मुश्किल में पड़ते थे; क्योंकि यह भी नहीं कह सकते थे कि यह महल नहीं है; था तो महल का ही हिस्सा। फिर भी महल बिलकुल नहीं था। कबाड़खाना था, कचराघर था। परेशान हो गए। फिर गांव के एक फकीर को जाकर कहा कि कोई रास्ता खोजें-कोई रास्ता! क्योंकि सम्राट पूछता है, क्या यह महल नहीं है? और हम कुछ जवाब नहीं दे सकते। वह आदमी खतरनाक है, वह कहता है, गर्दन कटवा देंगे अगर गलत सिद्ध हुआ। और गलत सिद्ध हो सकता है, क्योंकि यह महल का ही हिस्सा है। है सिर्फ कचराघर। और वह उसी में रह रहा है। वह कहता है, यह भी महल है, तो दूसरे महल में जाने की क्या जरूरत है? उस फकीर ने कहा, मैं चलता हूं। 128
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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