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________________ ताओ उपनिषद भाग २ है। वही सुबह पक्षियों का गीत बन जाती है। वही सुबह फूलों का खिलना हो जाती है। वही शक्ति! रात वृक्ष भी सो जाते हैं, पक्षी भी सो जाते हैं, प्राणी भी सो जाते हैं, आदमी भी सो जाता है। लेकिन कुछ आदमी हैं, जो अब नहीं सो पाते हैं। और धीरे-धीरे ऐसा लगता है कि शायद पूरी आदमियत नहीं सो पाएगी। जिस दिन आदमियत नहीं सो पाएगी, उसी दिन समझना कि पूरी आदमियत पागल हो गई। फिर हम कभी स्वस्थ नहीं हो सकते। क्योंकि हमने निषेध को छोड़ दिया। लाओत्से कहता है, सोना प्रथम है, जागना द्वितीय। क्योंकि निषेध पहले है। विश्राम पहले है, श्रम पीछे। और जितना गहरा होगा विश्राम, उतने गहरे श्रम में उतर जाओगे। इस निषेध को, इस अनस्तित्व को समझना पड़ेगा। इसे हम कई तरफ से समझें। जैसे मैंने कहा कि नींद है, वह अनस्तित्व है। और जागरण हमारा विधायक है, नींद हमारा निषेध है। जागने में हम सक्रिय होते हैं, नींद में हम शून्य हो जाते हैं। इसलिए जो आदमी रात भर सपने देखता रहता है, वह आदमी सुबह अनुभव करता है कि नींद नहीं हो पाई। क्योंकि स्वप्न निषेध और विधेय के बीच का हिस्सा है। सोए भी हैं और सो भी नहीं पा रहे हैं, ऐसी स्थिति है। जागे भी हैं और जागे नहीं हैं, ऐसी स्थिति है। तो बीच में डोलता है मन, तो क्रिया जारी रहती है। और कई बार तो लोग सुबह उठ कर जितने थके उठते हैं, उतने सांझ थके नहीं सोते।। मैंने सुना है कि एक ग्रामीण अपने मित्र के घर देश की राजधानी में आया। जब वह राजधानी से वापस लौटा, तो उसके मित्रों ने और गांव के लोगों ने पूछा कि गांव और शहर में तुमने क्या फर्क पाया? तो उसने कहा, मैंने फर्क पाया : गांव में लोग सांझ थके हुए होते हैं और सुबह ताजे उठते हैं। और शहर में लोग सांझ ताजे मालूम पड़ते हैं और सुबह थके उठते हैं। रात, सांझ शहर जगा हुआ मालूम पड़ता है-ताजा। क्लब हैं, होटलें हैं, सिनेमागृह हैं, सब आदमी ताजे मालूम पड़ते हैं। सुबह? जरा उठे, जाएं, एक काल्पनिक आंख बंद करके यात्रा करें लोगों के शयनकक्षों की, बेडरूम्स की। लोग उठ रहे हैं, मुर्दा; नहीं उठना चाहते हैं, किसी तरह उठ रहे हैं। मजबूरी है, इसलिए उठ रहे हैं। दफ्तर है, इसलिए उठ रहे हैं। दुकान है, इसलिए उठ रहे हैं। लेकिन जैसे खींचे जा रहे हैं, कोई भीतर से प्राण नहीं है, जो उठ रहा हो। मुर्दे की भांति उठाए जा रहे हैं। उठ जाएंगे, बिना रीढ़ के खड़े हो जाएंगे, चल पड़ेंगे। क्या, हुआ क्या है? नींद का जो निषेध है, वह खो गया है। नींद का जो नकार है, अनस्तित्व है, वह खो गया है। सुबह से सांझ तक हम बात कर रहे हैं, रात भी सपने में बात कर रहे हैं। रात भी लोग बड़बड़ाते रहते हैं। रात भी बोलते रहते हैं। भीतर नहीं, तो बाहर भी बोलते रहते हैं। चौबीस घंटे बोल रहे हैं। मौन अनस्तित्व है, शब्द अस्तित्व है। शब्द विधायक है, साइलेंस शून्य है। लेकिन जो व्यक्ति शब्दों में खो जाएगा और जिसके भीतर कभी भी शून्य घटित नहीं होता, और जिसको कभी भीतर शून्य का पता नहीं चलता, और जिसे कभी भीतर मौन की एक संधि नहीं मिलती-शब्द ही शब्द, शब्द ही शब्द-वह आदमी धीरे-धीरे जीवन की गहराइयों से वंचित हो जाता है। शब्द उपयोगी है, लेकिन शब्द काफी नहीं है। शब्द जरूरी है, लेकिन बस शब्द ही पर्याप्त नहीं है। शब्द चाहिए, लेकिन उससे भी ज्यादा निःशब्द चाहिए, उससे भी ज्यादा मौन चाहिए। ___ इसलिए ध्यान रखें, जिन लोगों के शब्दों में वजन होता है और जिन लोगों के शब्दों में प्राण होते हैं, वे वे ही लोग होते हैं जिनके पास मौन की क्षमता होती है। इस जगत में जो विराट शब्द पैदा हुए हैं, जो महाशब्द पैदा हुए हैं, वे उन लोगों से पैदा हुए हैं जो शून्य होने की कला जानते हैं। कोई बुद्ध जब बोलता है, तो उसके बोलने में एक-एक शब्द का जादू और है। कोई महावीर जब बोलता है, तो ऐसे ही नहीं बोलता जैसे हम बोल देते हैं। उसके एक-एक शब्द में सघन मौन समाया हुआ है। जब मोहम्मद बोलते हैं, तो वर्षों के मौन के बाद। जब जीसस बोलते हैं, तो तीस
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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