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________________ अबस्तित्व और खालीपन है आधार सब का में गहराई नहीं हो सकती, डेप्थ नहीं हो सकती। तेजी हो सकती है, त्वरा हो सकती है, गति हो सकती है, लेकिन गहराई नहीं हो सकती। इसलिए जवानी का सौंदर्य उथला होगा, ओछा होगा। अगर, जवानी जब खो जाती है, उसके खोने में भी कोई समझ पाए उपयोगिता, तो बुढ़ापे को एक सौंदर्य मिलता है, जो जवान को कभी भी नहीं मिल सकता। और ठीक भी है, क्योंकि बुढ़ापा जवानी से आगे है। ठीक भी है, ज्यादा विकासमान है। तो बुढ़ापे में एक गरिमा, एक गहराई, एक अनंत गहराई उपलब्ध हो जाती है। लेकिन वह जवानी के अभाव का उपयोग है। जीवन में तो है ही रहस्य। लेकिन जिसने जीवन में ही रहस्य को पकड़ा और मृत्यु के रहस्य को नहीं जाना, वह पूरे रहस्य को नहीं जान पाया। जीवन में मृत्यु के सामने कुछ भी नहीं है, मृत्यु के समक्ष कुछ भी नहीं है। मृत्यु अभाव है, अनस्तित्व है। लाओत्से कहता है, विधायक अस्तित्व, पाजिटिव एक्झिस्टेंस की उपयोगिता है। लेकिन निगेटिव एक्झिस्टेंस की तो बात ही और है। वह महा उपयोगिता है। उसका अर्थ ही और है। लेकिन हम जीवन में तो देख पाते हैं अर्थ, मृत्यु में हमें कोई अर्थ नहीं दिखाई पड़ता। मृत्यु हमारे लिए सिर्फ एक अंत है, समाप्त हो जाना है। प्रारंभ नहीं, एक नया उदघाटन नहीं, एक नए द्वार का खुलना नहीं, सिर्फ पुराने द्वारों का अचानक बंद हो जाना है। खुलना नहीं है कुछ भी। तो हमें मृत्यु का कोई पता नहीं। इस सबका कारण एक ही है कि हम पाजिटिव से बंधे हुए हैं। वह जो विधायक है, वह हमें परेशान किए जा रहा है। निगेटिव की हमने कभी कोई खबर नहीं ली। तो इस निगेटिव को हम थोड़ी तरफ से समझें, तो फिर यह अनस्तित्व हमारे खयाल में आ जाए। दिन में जागते हैं, तो हम जागने का हिसाब रखते हैं। और आदमी की चेष्टा होती है कि जितनी कम नींद से काम चल जाए, बेहतर। तो पश्चिम में बहुत से वैज्ञानिक विचार करते हैं कि आज नहीं कल हमें कोई इंतजाम करना चाहिए कि आदमी को सोना न पड़े। क्योंकि न सोना पड़े, तो उसकी जिंदगी में बीस साल और बढ़ जाएं। अगर आप साठ साल जीएंगे, तो बीस साल सोने में खो जाएंगे। तो बजाय इसके कि आपकी जिंदगी को बीस साल लंबा करके अस्सी साल किया जाए, क्या यह उचित न होगा कि आपके बीस साल सोने के, जो व्यर्थ जाते मालूम पड़ते हैं दिन, उनको हम बचा लें और आप साठ साल पूरा जी लें? तो वैज्ञानिक सोचते हैं कि कभी ऐसा उपाय हो जाएगा कि आदमी को सोने की जरूरत न रह जाए। लेकिन उन्हें पता नहीं है, यह विधायक पर अति जोर का परिणाम है। जो आदमी सोना भूल जाएगा, उसका जागना बिलकुल उदास और अर्थहीन हो जाएगा। कभी आपने खयाल किया है कि सांझ जब आप बिस्तर पर सोने जाते हैं, तो आंखें आपकी बुझ चुकी होती हैं; और सुबह जब उठते हैं, तो आंखों के दीए फिर से जगमगा जाते हैं। रात सिर्फ व्यर्थ नहीं गुजर जाती, रात अनस्तित्व के द्वारा शक्ति को पाने का उपाय है। निद्रा का अर्थ है निगेटिव में, नकार में, शून्य में डूब जाना, ताकि शून्य हमें पुनः शक्ति दे दे। इसलिए चिकित्सक कहते हैं कि आदमी की बीमारी ठीक नहीं हो सकती, कोई भी बीमारी ठीक नहीं हो सकती, अगर साथ ही नींद असंभव हो। तो फिर बीमारी ठीक नहीं हो सकती। कोई इलाज ठीक नहीं कर पाएगा। क्योंकि आदमी अगर अपने भीतर से शक्ति पाने की समस्त संभावनाएं बंद कर दे, तो ऊपर से दी गई दवाएं कुछ कर न पाएंगी। चिकित्सक अब स्वीकार करते हैं कि हम केवल बीमारी के ठीक होने में सहयोगी हो सकते हैं, सिर्फ सहयोगी। मूल रूप से तो बीमार स्वयं ही अपने को ठीक करता है। लेकिन वह ठीक कर सकता है तभी, जब सारी विधायकता को छोड़ कर रात के अंधेरे में, शून्य में खो जाए। शून्य में खोते ही हम प्राणों के गहरे तल पर पहुंच जाते हैं, जहां जीवन का आधार है, जहां जीवन का मूल स्रोत है; वहां से हम शक्ति को वापस पा लेते हैं। वही शक्ति सुबह हमारी आंखों में ताजगी बन कर दिखाई पड़ती
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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