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________________ दण्ड- ओम् ह्रीं अवतर अक्तर सोमे सोमे कुरू कुरू ओम् कवली कः क्षः स्वाहा शेष उपकरण 'वर्धमान विद्या' से अभिमंत्रित करें। फिर दीक्षार्थी के परिवार जन ओघा व मुहपत्ति गुरू महाराज को बहोराये । दीक्षार्थी खमासमण देकर कहे- इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं रयहरणाई वेसं समप्पेह | गुरू महाराज तीन नवकार मंत्र गिनकर 'सुम्गहियं करेह' कहकर दशियाँ दीक्षार्थी के दायीं ओर रखते हुए रजोहरण व मुहपत्ति अर्पण करें। दीक्षार्थी रजोहरण को प्राप्त कर आनंद उत्सव को अभिव्यक्त करता हुआ परमात्मा की तीन प्रदक्षिणा दें। पश्चात् झालर वादन के साथ कक्ष में जाकर सर्व आभूषणों, वस्त्रों को उतारे । चोटी पर कुछ केश रखते हुए क्षुरमुंडन करवा कर स्नान आदि करके साधु वेष धारण करे। साधु वेष धारण करने के बाद उसके मस्तिष्क पर चंदन से स्वस्तिक करें। झालर वादन के साथ मंडप में आवें । गुरू महाराज को मत्थएण वंदामि कहकर वंदना करें। धर्मदण्ड आदि अलग कर आसन बिछाकर खमासमणा देकर कहें- इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं लटिं गिण्ह । गुरू- गिण्हामो । शिष्य- इच्छं । गुरू महाराज चोटी का लुंचन करें। शिष्य खमा. इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं सम्मत सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं आरोवणत्थं इरियावहियं पडिक्कमाचेह । गुरू- पडिक्कमावेमो । शिष्य- इच्छं । कहकर इरियावही. तस्स. अन्नत्थ. बोलकर सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का काउसग्ग करे। प्रकट लोगस्स कहें। मुहपत्ति का प्रतिलेखन करें। पुजारी से परमात्मा पर पडदा करें। स्थापनाजी की ओर मुख करके दो वांदणा दें। पडदा दूर करें। शिष्य खमा. इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं सम्मत्त सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं आरोवणत्थं काउसग्गं करावेह । गुरू- करावेमो । शिष्य- इच्छं । शिष्य खमा सम्मत्त साम्माइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं आरोवणत्थं करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ. कहकर गुरू म एवं शिष्य दोनों सागरवरगंभीरा तक एक लोगस्स का कायोत्सर्ग कर प्रकट लोगस्स कहें। 22 / योग विधि
SR No.002356
Book TitlePravrajya Yog Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhsagar
PublisherRatanmala Prakashan
Publication Year2006
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size5 MB
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