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________________ राज रिद्धि रमणी मिले सुख संपत्ति बहु दाम।। हय गय रथ पायक मिले लक्ष्मी को नहीं पार। पत्र कलत्र मंगल सदा पाये शिव दरबार।। चेतन चिंता हरण को जाप जपे तिहुं काल। कर आंबिल षट्मास को उपजे मंगलमाल ।। पारस नाम प्रभाव से बाढे बह बल ज्ञान। मन वांछित सुख उपजे नित समरो भगवान ।। सवंत अठारा उपरे साठ त्रीस परिमाण। पोष शुक्ल दिन पंचमी वार शनिश्चर जाण।। पढे गुणे जो भाव से सुने सदा चित लाय। चेतन सम्पति बहुत मिले सुमरो मन-वच-काय।। श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तोत्रम्। श्री पद्म पद्मापति पूजितांग, स्नात्राम्भसो जातजयं जरान्तात्; सत्प्रातिहार्येण सदा सनाथं, नमामि शंखेश्वर पार्श्वनाथं । लीलागृहं मंगल मालिकायाः, सुखाऽऽसिकायाः प्रवरं वदान्यम् । यमीश्वरं निर्मल योगनाथं, नमामि शंखेश्वर पार्श्वनाथं । गलत् प्रभावं कमठस्य कष्टं, व्यालस्य बाल्येपि कृतं हि येन; तिं नित्य सेवाऽऽगत नागनाथं, नमामि शखेश्वर पार्श्वनाथं । सुखश्रिया निर्जित चारुचन्द्रं, सद्भूषणा भूषित दिव्य देहम्; प्रभावती प्रेमरसिकनाथं, नमामि शंखेश्वर पार्श्वनाथं । अनेक देशाऽऽगत यात्रिकाणां, मनोऽभिलाषं ददसे समक्षम्; गम्भीरता हारित सिन्धुनाथं, नमामि शंखेश्वर पार्श्वनाथं ।
SR No.002355
Book TitleParmatma ka Abhishek Ek Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJineshratnasagar
PublisherAdinath Prakashan
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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