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________________ 110. धरती पर धर्म स्थान के निर्माण की अपेक्षा | 123. पृथ्वी के समान सहनशीलता का गुण रखती आत्मा रुपी क्षेत्र पर मनमंदिर का निर्माण है - माँ। करे। 124. माता-पिता को दुःख देकर कोई इन्सान 111. धर्म के लिए समय का इंतजार न करें। सुखी नहीं हो सकता। शास्त्र में माता पिता नाग सुलसा के 6 पुत्रों ने संयम लिया। का उपकार माना है। 112. वृद्ध व्यक्तियों के प्रति आदर और सम्मान 125. संघर्ष-सदैव “मुझे मिले" इस भावना के कारण की आवश्यकता है। होता है। 113. द्वेष की परम्परा बैर में परिवर्तित हो जाती 126. स्वयं दुःखी है, इसलिए दूसरो को दुःखी करते हैं। 114. एवंता, राजा अक्षयक, अर्जुनमाली तथा 127. दृष्टि में लोभ - हृदय में शैतान का वास। 13 गाथापतियों ने दीक्षा ली। लोभ को 'पाप' का बाप माना है। 115. अर्जुन व गज. ने 5 समिति 3 गुप्ति का 128. चिता (आग) तो सिर्फ एक बार जलाती है, ज्ञान सीखा। 66 जीवों मे 11 अंगो का पर चिंता अनेक बार जलाती है। . अध्ययन किया, शेष 12 (14 पूर्व) व 10 ने 12 अंगो का अध्ययन किया। 129. एक अग्नि का दूसरी अग्नि से सम्बन्ध होता है। 116. संतोष की उत्पति त्याग' से होती है। त्याग से सन्तोष बढ़ता है। 130. माँ तीन है '1) जन्म देने वाली माँ 2) जिनवाणी माँ 3) धरती माँ । चौथी गौ 117. सदैव त्याग (छोड़ने) की इच्छा रखें। माता मां मानी गई है। 118. मुनि अपने 'मन' का मालिक होता है। 131. बुद्धिमान पुरुष वर्तमान की घटनाओं से (मर्यादा सहित) भविष्य का अनुमान लगा लेता है। 119. जो स्वयं पर शासन करले, वो दुनियाँ पर शासन कर सकता है। जिन भक्ति के आगे 132. बाल अवस्था - अन्जान पन, भोलापन मौत का भी भय नहीं। चंचलता एवं 'वैर भाव रहित' अवस्था है। सरलता में ही सार है। 120. धर्म दलाली प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय है। श्री कृष्ण ने धर्म दलाली से ही तीर्थंकर | 133. णमो का भाव द्वेष समाप्त करने में सहायक गोत्र बांधा। 121. शरीर जलता है, गुण नहीं (पूज्य 134. लोभ को छोड़े बिना मुक्ति नहीं। लोभ का थोब करो। गजसुकुमाल महामुनि) 122. मरण भय सबसे बड़ा भय है तथा वैर को | 135. जो तिरता एवं दूसरों को तिराता है, वह महा भय माना है। मोहनीय कर्म का एक तीर्थ कहलाता है। श्री कृष्णा. भविष्य का भेद भय' है। अच्छा अनुमान लगा लेते थे।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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