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________________ है = सिद्धि-असिद्धिविषयक प्रश्न के पिण्ड में २ का भाग देने से १ शेष बचे तो कार्यसिद्धि; और शून्य बचे तो असिद्धि; लाभालाभविषयक प्रश्न के पिण्ड में २ का भाग देने से १ शेष में लाभ और शून्य शेष में हानि, दिशा-विषयक प्रश्न के पिण्ड में ८ का भाग देने से एकादि शेष में क्रमशः पूर्वादि दिशा; सन्तानविषयक प्रश्न के पिण्ड में ३ का भाग देने से १ शेष में पुत्र, २ शेष में कन्या और शून्य शेष में नपुंसक एवं कालविषयक प्रश्न के पिण्ड में ३ का भाग देने से १ शेष में भूत, २ शेष में वर्तमान और शून्य शेष में भविष्यत्काल समझना चाहिए। उपर्युक्त उदाहरण में सन्तानविषयक प्रश्न होने के कारण पिण्ड में ३ का भाग दिया-१३३ ३ = ४ भागफल और शेष ,१ रहा; अतः इसका फल पुत्रप्राप्ति समझना चाहिए। अभिधूमित काल में पिण्ड बनाने की विधि-अभिधूमित काल का प्रश्न हो तो केवल स्वर संख्या को केवल वर्ण संख्या से गुणा करने पर पिण्ड होता है। उदाहरण-मोतीलाल ने अभिधूमित (मध्याह्न) समय में पूछा कि मुझे व्यापार में लाभ होगा या नहीं? मध्याह्न का प्रश्न होने से उससे फल का नाम पूछा तो उसने सेब का नाम बताया। पृच्छक मोतीलाल के प्रश्नावाक्य का विश्लेषण (स् + ए + ब् + अ) यह हुआ। इसमें स् + ब् ये दो वर्ण (व्यंजन) और ए + अ ये दो स्वर हैं। प्रथम और तृतीय चक्र के अनुसार क्रमशः वर्ण और स्वर संख्या (३ + ४) = ७ व्यंजन संख्या और (११ + १ = १२) स्वर संख्या हुई। इनका परस्पर गुणा करने से १२ x ७ = ८४ पिण्ड हुआ; लाभालाभ विषयक प्रश्न होने के कारण पिण्ड में २ का भाग दिया तो-८४ + २ = ४२ लब्ध, शेष शून्य रहा, अतः इस प्रश्न का फल हानि समझना चाहिए। दग्ध काल में पिण्ड बनाने की विधि-यदि दग्ध (अपराह्र) काल.का प्रश्न हो तो केवल वर्ग की संख्या को वर्ण (व्यंजन) की संख्या से गुणा कर गुणनफल में स्वरों और वर्णों की संख्या मिलाने पर पिण्ड होता है। उदाहरण-मोतीलाल ने दग्ध काल में आकर पूछा कि मैं उत्तीर्ण होऊँगा या नहीं? इस प्रश्न में भी उससे फल का नाम पूछा तो उसने दाडिम कहा। इस प्रश्न वाक्य का (द् + आ + इ + इ + म् + अ) यह विश्लेषण हुआ; द्वितीय चक्रानुसार वर्ग संख्या (त ५ + ट ४ + प ६) = १५ हुई तथा तृतीय चक्रानुसार वर्ण संख्या (द् ३ + ड् ३ + म् ५) = ११ हुई। इन दोनों का परस्पर गुणा किया तो ११ - १५ = १६५ हुआ। इसमें प्रथम चक्रानुसार स्वरसंख्या (आ २ + इ ३ + अ १) = ६ जोड़ दी तो १६५ + ६ = १७१ हुआ। इस योगफल में वर्ण संख्या (द् ३ + इ ३ + म् ५) = ११ मिलाया तो १७१ + ११ = १८२ पिण्ड हुआ। कार्यसिद्धि विषयक प्रश्न होने के कारण २ से भाग दिया तो १८२ + २ = ६१ लब्ध और शेष शून्य रहा। अतएव इस प्रश्न का फल परीक्षा में अनुत्तीर्ण होना हुआ। केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : ६७
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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