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________________ शुक्र या चन्द्रमा उसमें स्थित हो तो भ्रमर की चिन्ता एवं धनु राशि में मंगल स्थित हो और यह छठे भाव से सम्बन्ध रखता हो तो पतंग की चिन्ता कहनी चाहिए। ततीय भाव में वृश्चिक राशि हो तो बिच्छू और खटमल की चिन्ता, कर्क राशि हो तो कच्छप की चिन्ता, मेष राशि हो तो गोधा की चिन्ता, वृष राशि हो तो छिपकली की चिन्ता, मकर राशि हो तो छिपकली, गोधा, चींटी, लट और केंचुआ आदि जीवों की चिन्ता एवं वृश्चिक राशि में मंगल के तृतीय भाव में रहने पर विषैले कीड़ों की चिन्ता कहनी चाहिए। चौथे भाव में मकर राशि के रहने पर चन्दनगोह, दुमुँही आदि जीवों की चिन्ता, कर्क राशि के रहने पर चींटी की चिन्ता और धनु राशि के रहने पर बिच्छू की चिन्ता कहनी चाहिए। बहुपाद योनि का विचार प्रधानतः लग्न, चतुर्थ, तृतीय और षष्ठ भाव से करना चाहिए। यदि उक्त भावों में क्षीण चन्द्रमा, क्रूर ग्रह युक्त निर्बल बुध, राहु और शनि स्थित हों तो निम्न श्रेणी के बहुपाद जीवों की चिन्ता कहनी चाहिए। धातुयोनि के भेद अथ धातुयोनिः। तत्र द्विविधो धातुः धाम्यमधाम्यञ्चेति। त द प ब उ अं सा एते धाम्याः । घ थ ध फ भ ऊ व ए अधाम्याः । . अर्थ-धातु योनि के दो भेद हैं-धाम्य और अधाम्य। त द प ब उ अंस इन प्रश्नाक्षरों के होने पर धाम्य धातु योनि और घ थ ध फ भ ऊ व ए इन प्रश्नाक्षरों के होने पर अधाम्य धातु योनि कहनी चाहिए। विवेचन-जो धातु अग्नि में डालकर पिघलाये जा सकें, उन्हें धाम्य और जो अग्नि . में पिघलाये नही जा सकें उन्हें अधाम्य कहते हैं। यदि त द प ब उ अंस ये प्रश्नाक्षर हों तो धाम्य और घ थ ध फ भ ऊ व ए ये प्रश्नाक्षर हों तो अधाम्य धातु योनि होती है। धाम्याधाम्य धातुयोनि को गणित क्रिया द्वारा अवगत करने के लिए प्रश्नकर्ता से पुष्पादि का नाम पूछकर पूर्वाह्नकाल में वर्ग संख्या सहित वर्ण की संख्या और वर्ग संख्या सहित स्वर की संख्या को परस्पर गुणाकर गुणनफल में नामाक्षरों की वर्ग संख्या सहित वर्ण की संख्या और वर्ग संख्या सहित स्वर की संख्या को परस्पर गुणा करने पर जो गुणनफल हो, उसे जोड़ देने से योगफल पिण्ड होता है। मध्याह्न काल के प्रश्न में प्रश्नाक्षर और नामाक्षर दोनों की स्वर संख्या को केवल वर्ण संख्या से गुणा करने पर दोनों गुणनफलों के योग तुल्य मध्याह्न कालीन पिपड होता है। और सायं काल के प्रश्न में प्रश्नाक्षर और नामाक्षर के वर्ण की संख्या को वर्ग की संख्या को वर्ण की संख्या से गुणाकर दोनों गुणनफलों के योगतुल्य सायंकालीन पिण्ड होता है। धातुचिन्ता सम्बन्धी प्रश्न होने पर इस पिण्ड में दो का भाग देने पर एक शेष में धाम्य और शून्य शेष में अधाम्य धातु योनि होती है। १. तुलना-के. प्र. र. पृ. ६६-६७। के. प्र. सं. पृ. १६ । ग. म. पृ. ५। प्र. कु. प १३। प्र. कौ. प. ५। ज्ञा. प्र. पृ. १६। २. धाम्या अधाम्येति-क मू.।। केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : १०७
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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