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________________ संज्ञा है। किसी-किसी आचार्य के मत से ई औ घ झ ढ ध भ व ह उ ऊ ङ ञण न म अं अः ये वर्ण स्थलसंज्ञक और इ ओ ग ज ड द ब ल स ये वर्ण जलचरसंज्ञक हैं। गणित क्रिया द्वारा निकालने के लिए मात्राओं को द्विगुणित कर वर्णों से गुणा करना चाहिए। यदि गुणनफल विषमसंख्यक हो तो स्थलचर और समसंख्यक हो तो जलचर अपद योनि की चिन्ता समझनी चाहिए। पादसंकुला-योनि के भेद और उनके लक्षण __ अथ' पादसंकुला योनिः२। ई औ घ झ ढाः अण्डजाः भ्रमरपतङ्गादयः।ध भ व हाः स्वेदजाः यूकमत्कुणमक्षिकादयः। तत्र नाम्ना विशेष इति पादसंकुलायोनिः। इति जीवयोनिः। अर्थ-पादसंकुल योनि के दो भेद हैं-अण्डज और स्वेदज । इ औ घ झ ढ ये प्रश्नाक्षर अण्डज संज्ञक-भ्रमर, पतंग इत्यादि और ध भ व ह ये प्रश्नाक्षर स्वेदज संज्ञक-चूँ, खटमलादि हैं। नामानुसार विशेष प्रकार के भेदों को समझना चाहिए। इस प्रकार पादसंकुल योनि और जीवयोनि का प्रकरण समाप्त हुआ। विवेचन-प्रश्नकर्ता के प्रश्नाक्षरों की स्वर संख्या को दो से गुणा कर प्राप्त गुणनफल में प्रश्नाक्षरों की व्यंजन संख्या को चार से गुणाकर जोड़ने से योगफल समसंख्यक हो तो स्वेदज और विषमसंख्यक हो तो अण्डज बहुपाद योनि के जीवों की चिन्ता कहनी चाहिए। जैसे-मोतीलाल प्रातःकाल ८ बजे पूछने आया कि मेरे मन में किस प्रकार के जीव की चिन्ता है? प्रातःकाल का प्रश्न होने से मोतीलाल से पुष्प का नाम पूछा तो उसने वकुल का नाम बतलाया। 'वकुल' इस प्रश्न वाक्य का (व् + अ + क् + उ + ल् + अ) यह विश्लेषित रूप हुआ। इसकी स्वर संख्या तीन को दो से गुणा किया तो ३ x २ = ६, व्यंजन संख्या तीन को चार से गुणा किया तो ३ x ४ = १२, दोनों का योग किया तो १२ + ६ = १८ योगफल हुआ; यह समसंख्यक है, अतः स्वेदज योनि की चिन्ता हुई। प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रश्नाक्षरों के नियमानुसार भी प्रथमाक्षर 'व' स्वेदज योनि का है, अतः स्वेदज जीवों की चिन्ता कहनी चाहिए। प्रश्न लग्न से यदि प्रश्न का फल निरूपण किया जाय तो मेष, वृष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, मकर का पूर्वार्द्ध इन राशियों के प्रश्न लग्न होने पर बहुपद जीव योनिकी चिन्ता कहनी चाहिए। मेष, वृष, कर्क और सिंह राशि के प्रश्न लग्न होने पर अण्डज जीव योनि की चिन्ता और वृश्चिक एवं मकर राशि के पन्द्रह अंश तक लग्न होने पर स्वेदज जीव योनि की चिन्ता कहनी चाहिए। मिथुन राशि में मंगल या बुध हो और चतुर्थ भाव में रहनेवाले ग्रहों से सम्बद्ध हो तो मत्कुण की चिन्ता, कन्या राशि में शनि हो तथा चतुर्थ भाव को देखता हो तो जूं की चिन्ता, मीन राशि में कोई ग्रह नहीं हो तथा लग्न में कर्क राशि हो और १. तुलना-के. प्र. र. पृ. ६५-६६ । चं. प्र. ३३३-३३४ । ष. प. भ. पृ. ८ । प्र. को. पृ. ६ । शा. प्र. पृ. २१ । ___ ग. म. पृ. ८ । के. हो. ह. ८६। २. अथ पादसंकुलाः भ्रमरखर्जूरादयः-क. मू.। १०६ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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