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________________ 66. योग, मोक्ष-हेतु मोक्षहेतुर्यतो योगो भिद्यते न ततः क्वचित् । साध्याभेदात् तथाभावे तूक्तिभेदो न कारणम् ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1618] - योगबिन्दु-3 योग मोक्ष का हेतु है । परम्पराओं की भिन्नता के बावजूद मूलत: उसमें कोई भेद नहीं हैं । जब सभी के साध्य या लक्ष्य में कोई भेद नहीं है, वह एक समान है, तब उक्तिभेद, कथन-भेद या विवेचन की भिन्नता वस्तुत: उसमें कोई भेद नहीं ला पाती । 67. योग-लक्षण . योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः ।। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1621] - पातंजलयोगदर्शन - 12 चित्तवृत्तियों के निरोध को योग कहते हैं। योगाचार मोक्षेण योजनाद् योगः सर्वोऽप्याचार इष्यते । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1625] - ज्ञानसार - 27 मोक्ष के साथ आत्मा को जोड़ने से सारे आचरण भी योग कहलाते 69. कर्म-फल . अवश्यमेव भोक्तव्यं, कृतं कर्मशुभाशुभम् । नाभुक्तं क्षीयते कर्म, कल्पकोटिशतैरपि ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1633] - धर्मबिन्दु - 11 [1] करोड़ों युगों के व्यतीत हो जाने पर भी किए हुए कर्मों का क्षय नहीं होता । अपने किए हुए शुभाशुभ कर्म अवश्य ही भोगने पड़ते हैं। अभिधान राजेन्द्र कोप में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . 73
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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