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________________ - उत्तराध्ययन 362 जिस आकाश के भाग में जीव-अजीव (जड़-चेतन) दोनों रहते हो, उसे लोक कहते हैं और जहाँ आकाश ही हो, धर्म-अधर्म आदि न हो, उसे अलोक कहते हैं। 62. वैर-त्याग भूतेहिं न विरुज्झेज्जा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1565] - सूत्रकृतांग1/15/4 किसी भी प्राणी के साथ वैरभाव मत रखो । 63. भय-मुक्त साधक जीवियासामरणभय विप्पमुक्का । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1566 ] - भगवती 8MB सच्चे साधक जीवन की आशा और मृत्यु के भय से सर्वथा मुक्त होते हैं। 64. कर्म-कौशल योगः कर्मसु कौशलम् । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1613] - भगवद्गीता ?/50 कुशलतापूर्वक किया गया कार्य योग है। उदारचेता पुरुषों की पहचान अयं निजः परोवेत्ति, गणना लघुचेतसाम् । उदारचरितानां तु, वसुधैव कुटुम्बकम् ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 1617] - हितोपदेश-मित्रलाभ 71 हल्के चित्तवाले लोगों की-'यह अपना है-यह पराया है'-ऐसी बुद्धि होती है । उदार चित्तवाले तो समग्र पृथ्वी के लोगों को ही अपना कुटुम्बीजन मानते हैं। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ट-4 • 72 %3D D
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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