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________________ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1422] - उत्तराध्ययन 25/41 जो भोगी (भोगासक्त) है, वह कर्मों से लिप्त होता है। 31. विरक्त साधक विरत्ता उ न लग्गति, जहा से सुक्कगोलए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1422] एवं 2699 - उत्तराध्ययन 25/43 मिट्टी के सूखे गोले के समान विरक्त साधक कहीं भी चिपकता नहीं है अर्थात् आसक्त नहीं होता। 32.अभोगी अभोगी नोवलिप्पई। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1422] - उत्तराध्ययन 25/41 जो भोगासक्त नहीं है; वह कर्मों से लिप्त नहीं होता है। 33. भोगी भटके भोगी भमइ संसारे। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1422] - उत्तराध्ययन 25/A1 भोगी संसार में भटकता है। 34. मुक्त कौन ? अभोगी विप्पमुच्चइ । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1422] - उत्तराध्ययन - 25/41 भोगों में अनासक्त ही संसार से मुक्त होता है। 35. अयतना से हिंसा अजयं चरमाणो उ पाणभूयाइं हिंसई । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4.64
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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