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________________ सचित्तया अचित्त कोई भी पदार्थ थोड़ा हो या ज्यादा, कितना ही क्यों न हो, जो स्वामी के दिए बिना चोरी से नहीं लेता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। 21. कर्म बलवान् कम्माणि बलवन्ति हि। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1421] - उत्तराध्ययन - 25/30 निश्चय ही कर्म बलवान् है। तापस नहीं कुसचीरेण न तावसो। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1421] - उत्तराध्ययन 25/31 कुश-चीवर-वल्कलादि वस्त्र पहनने मात्र से कोई तापस नहीं होता। 23. ब्राह्मण नहीं न ओंकारेण बंभणो। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1421] - उत्तराध्ययन 25/31 ओंकार का जाप करने मात्र से कोई ब्राह्मण नहीं होता। 24. मुनि नहीं न मुणी रण्णवासेणं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1421] - उत्तराध्ययन - 25/31 केवल जंगल में रहने से ही कोई मुनि नहीं हो जाता। 25. ज्ञान से मुनि नाणेण य मुणी होइ । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1421] - उत्तराध्ययन - 25/32 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 62
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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