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________________ मन में कपट रखकर झूठ मत बोलो । 318. श्रुत धर्म चारित्रधर्म दुविहो उ भावधम्मो, सुय धम्मो खलु चरित्त धम्मो य । सुय धम्मे सज्झाओ, चरित्त धम्मे समणधम्मे ॥ ( दुविहो लोगुत्तरिओ, सुय धम्मो खलु चरित्त धम्मो य ) श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 4 पृ. 2667-2669] दशवैकालिक नियुक्ति 1 /43 लोकोत्तर धर्म दो तरह का होता है - एक श्रुतधर्म और दूसरा चारित्रधर्म | स्वाध्याय - आगम के पठन-पाठन को श्रुत और सम्यग्दृष्टि साधु आचरण को चारित्र कहते हैं । के De - 319. इन्द्रिय दान्त सव्वतो संवुडे दंते, आयाणं सुसमाहारे । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2667] सूत्रकृतांग - 18/20 सभी तरह से संवृत्तशील होता हुआ तथा इन्द्रियों का दमन करता हुआ संयमी आदानसमिति का भलीभाँति आचरण करे | 320. श्रमण कौन ? - यः समः सर्वभूतेषु, त्रसेषु स्थावरेषु च । तपश्चरति शुद्धात्मा, श्रमणोऽसौ प्रकीर्तितः ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2669 ] आगमीयसूक्तावली : - पृ. 2 नन्दिसूक्तानि 2/26 जोस और स्थावर समस्त प्राणियों पर समभाव रखता है और जो शुद्धात्म तप में विचरण करता है उसे 'श्रमण' कहते हैं । 321. मैत्री परहित चिन्ता मैत्री । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2672 ] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 137
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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