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________________ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2569] - उत्तराध्ययन - 10/3 . यह जीवन अनेक विघ्न-बाधाओं से भरा हुआ है । 287. दुर्लभ क्या ? दुल्लमे खलु माणुसे भवे । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2570] - उत्तराध्ययन 10A मनुष्यजीवन निश्चय ही बड़ा दुर्लभ है । 288. दुर्लभ आर्यत्व लभ्रूण वि माणुसत्ताणं आयरियत्तं पुणरावि दुल्लहं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2570] - उत्तराध्ययन 1046 अति दुर्लभ मनुष्यभव प्राप्त करके भी आर्य-व्यवस्था (आर्यदेश में जन्म प्राप्त होना) मिलना और भी कठिन है। 289. दुर्लभ-धर्मश्रद्धा लखूण वि उत्तमं सुई, सद्दहणा पुणरावि दुल्लहा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 4 पृ. 2570 ] - उत्तराध्ययन - 10/09 उत्तम धर्म श्रवण करके भी उसपर श्रद्धा (रुचि) होना और भी कठिन है। 290. यथाकर्म संसरइ सुभासुभेहिं कम्मेहिं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2570] - उत्तराध्ययन 10/15 जीव अपने शुभ-अशुभ कर्मों के अनुसार नरक-तिर्यंच आदि चतुर्गति में भ्रमण करता है। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . 130
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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