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________________ 257. दया ? यत्नादपि पस्वलेशं हर्तुं या हृदि जायते । इच्छाभूमिः सुरश्रेष्ठ ! सा दया परिकीर्तिता ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग - पृ. 2456] हारिभद्रीयाष्टक 24 मनुष्य के हृदय में यत्न करके भी दूसरों के कष्ट को दूर करने की जो इच्छा उत्पन्न होती है, वह 'दया' कहलाती है। 258. जहाँ दया नहीं ! न तद्दानं न तद्ध्यानं, न तज्ज्ञानं न तत्तपः । न सा दीक्षा न सा भिक्षा, दया यत्र न विद्यते ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2457 ] एवं [भाग 5 पृ. 151] धर्मरत्नप्रकरण - 14-15 वह दान दान नहीं; वह ध्यान ध्यान नहीं, वह ज्ञान ज्ञान नहीं, वह तप तप नहीं, वह दीक्षा दीक्षा नहीं, और वह भिक्षा भिक्षा नहीं है; जिसमें दया नहीं है । 259. धर्म का मूल - मूलं धम्मस्स दया । - धर्म का मूल दया है । 'द्रव्य' कहते हैं । 260. द्रव्य - लक्षण गुणाणमासओ दव्वं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2457 ] धर्मस्त्नप्रकरण 17/14 - - - उत्तराध्ययन 28/6 गुण जिसके आश्रित होकर रहे, जो गुणों का आधार हो, उसे श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2463] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस खण्ड-4 • 123
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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