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________________ 5. भयाकुल-मानव हिंडंति भयाउला सढा, जाति जरा मरणेहऽभिदुता । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 2] - सूत्रकृतांग 12348 भय से व्याकुल शठजन-दुष्टजन, जन्म-जरा और मृत्यु से पीड़ित होकर संसार चक्र में भ्रमण करते हैं । 6. अव्यक्त दुःख अव्वत्तेण दुहेण पाणिणो । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 2] - सूत्रकृतांग 128 सभी प्राणी अव्यक्त (अलक्षित) दुःख से दु:खी हैं । धर्म से अनभिज्ञ अण्णाणपमाद दोसेणं, सततं मूढे धम्मं णाभिजाणति । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 8] - आचारांग 1/ 5 51 अज्ञान और प्रमाद के दोष से सतत मूढ बना हुआ जीव धर्म को । नहीं जान पाता। 8. अपरिपक्व मानव वयसा वि एगे बुइता कुप्पति माणवा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 8] - आचारांग 1/5/4462 कुछ अपरिपक्व मनुष्य थोड़े से प्रतिकूल वचन से भी कुपित हो जाते हैं। 9. अभिमानी-मोहमूढ़ उण्णतमाणे य णरे महतामोहेण मुज्झति । . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 8] ( अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 58 )
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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