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________________ 1. कृतकर्म सव्वे सय कम्म कप्पिया । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 2] - सूत्रकृतांग Inan8 सभी प्राणी अपने कृत कर्मों के कारण नाना योनियों में भ्रमण करते हैं। 2. अकेला ! एगस्स गती य आगती । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 2] - सूत्रकृतांग 12347 आत्मा (परिवार आदि को छोड़कर) परलोक में अकेला ही गमनागमन करता है। 3. आत्मा ही दुःख भोक्ता एगो सयं पच्चणुहोति दुक्खम् । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 2] - सूत्रकृतांग 1/52/22 आत्मा अकेला स्वयं अपने किए हुए दु:खों को भोगता है । 4. मैं सदा अकेला एकः प्रकुरूते कर्म, भुंक्ते एकश्च तत्फलं । जायत्येको म्रियत्येको, एको याति भवान्तरम् ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 2] . एवं [भाग 7 पृ. 493] __ - आचारांगवृत्ति (शीलांक) पृ. 190 आत्मा अकेला कर्म करता है, अकेला ही उसका फल भोगता है, अकेला उत्पन्न होता है, अकेला ही मरता है और अकेला ही भवान्तर में जाता है। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 57
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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