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________________ 85. उदयं जह मच्छाणं गमणाणुग्गहकर हवदि लोए। तह जीवपुग्गलाणं धम्मं दव्वं वियाणेहि।। उदयं जल जह जैसे मछलियों के लिए मच्छाणं गमणाणुग्गहकरं गमन में उपकारी (उदय) 1/1 अव्यय (मच्छ) 4/2 [(गमण)+(अणुग्गहकरं)] [(गमण)-(अणुग्गहकर) 1/1 वि] (हव) व 3/1 अक (लोअ) 7/1 अव्यय [(जीव)-(पुग्गल) 4/2] होता है लोक में वैसे ही जीव और पुद्गलों के जीवपुग्गलाणं लिए धम्म धर्म दव्वं (धम्म) 2/1 (दव्व) 2/1 (वियाण) विधि 2/1 सक द्रव्य को जानो वियाणेहि ____ अन्वय- लोए जह मच्छाणं उदयं गमणाणुग्गहकरं हवदि तह जीवपुग्गलाणं धम्मं दव्वं वियाणेहि। ___ अर्थ- लोक में जैसे मछलियों के लिए जल गमन में उपकारी होता है वैसे ही जीव और पुद्गलों के लिए धर्म द्रव्य को जानो। पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार (95)
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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