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________________ ४० आगम के आलोक में - कषाय सल्लेखना पण्डित सदासुखदासजी अब कषाय सल्लेखना की बात करते हैं - “काय सल्लेखना की चर्चा के उपरान्त अब कषाय सल्लेखना की बात करते हैं - जैसे तपश्चरण से काया को कृश किया जाता है; वैसे ही रागद्वेष-मोहादि कषायों को भी साथ-साथ ही कृश करना वह कषाय सल्लेखना है। बिना कषायों की सल्लेखना किये काय सल्लेखना व्यर्थ है। काय का कृशपना तो रोगी, दरिद्री, पराधीनता से मिथ्यादृष्टि के भी हो जाता है। देह को कृश करने के साथ ही साथ राग-द्वेष-मोहादि को कृश करके, इसलोक-परलोक संबंधी समस्त वांछा का अभाव करके, देह के मरण में कुटुम्ब-परिग्रहादि समस्त पर द्रव्यों से ममता छोड़कर, परम वीतरागता से संयम सहित मरण करना वह कषाय सल्लेखना है। यहाँ ऐसा विशेष जानना : जो विषय-कषायों को जीतनेवाला होगा; उसी में समाधिमरण करने की योग्यता है। विषयों के आधीन तथा कषाय युक्त के समाधिमरण नहीं होता है। ___ संसारी जीवों के ये विषय-कषाय बड़े प्रबल है, बड़े-बड़े सामर्थ्यधारियों द्वारा नहीं जीते जा पाते हैं। इन्होंने बड़े प्रबल बल के धारक चक्रवर्ती, नारायण, बलभद्र आदि को भ्रष्ट करके अपने आधीन किया है; अतः अत्यन्त प्रबल हैं। ___ संसार में जितने भी दुःख हैं; वे सभी विषयों के लम्पटी, अभिमानी तथा लोभी को होते हैं। कितने ही जीव जिनदीक्षा धारण करके भी विषयों की आताप से भ्रष्ट हो जाते हैं, अभिमान व लोभ नहीं छोड़ सकते हैं। अनादिकाल से विषयों की लालसा से लिप्त व कषायों से प्रज्वलित संसारी जीव अपने को भूलकर स्वरूप से भ्रष्ट हो रहे हैं।
SR No.002296
Book TitleSamadhimaran Ya Sallekhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2015
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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