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________________ आगम के आलोक में - _ यदि समाधिमरण के बाद ऊँचे स्वर्ग में चले गये तो क्या करोगे? जब तक संसार में रहना होगा, तब तक क्रमबद्धपर्यायानुसार जैसे रहना होगा, रहेंगे; पर हमारी भावना सागरों पर्यन्त संसार में रहने की कदापि नहीं है। ___ भगवान आदिनाथ और भरत चक्रवर्ती तो पिछले भव में सर्वार्थसिद्धि में तैतीस सागर तक रहे थे। ___ हाँ, रहे थे; पर वे भी सागरों पर्यन्त संसार में रहने की भावना वाले नहीं थे। धर्म भावुकता में नहीं है, विवेक में है। विवेक संगत बात तो यही है कि कोई भी ज्ञानी सागरों पर्यन्त संसार में रहने की भावना वाला नहीं होता। ____यदि हमें भी रहना होगा तो हम भी रहेंगे ही; पर हमारी भावना ऐसी नहीं है। - हमने तो बड़े-बड़े ज्ञानियों को ऐसा कहते सुना है कि हम तो गुरुदेव श्री के साथ ही मोक्ष जायेंगे? सुना होगा; पर वे भावुकता के क्षणों में ऐसा कह गये होंगे। उक्त कथन को व्यवहार वचन ही समझना चाहिये। बहुत से लोग पूरे कुटुम्ब-परिवार के साथ मोक्ष जाना चाहते हैं। उनके लिये तो मैंने बहुत पहले लिखा था कि - ले दौलत प्राण प्रिया को तुम मुक्ति न जाने पावोगे। यदि एकाकी चल पड़े नहीं तो यही खड़े रह जावोगे।। मोक्षमार्ग तो अकेलेपन का मार्ग है। इसमें साथ का क्या काम? साथ की भावना तो राग की भावना है और जैनदर्शन वीतराग भावरूप हैं। यह तो आप जानते ही होंगे कि संघ में रहनेवाले मुनिराजों से एकल विहारी मुनिराज अधिक महान होते हैं। उनकी महानता के
SR No.002296
Book TitleSamadhimaran Ya Sallekhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2015
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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